माना जाता है कि द्वापर युग में जब पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीता तूने इस बात का बहुत बुरा लगा कि उन्होंने युद्ध जीतने के लिए अपने ही भाइयों को मार इसी बात से वह काफी दुखी थे और अपने पापों का पश्चाताप करने के लिए भगवान शिव के दर्शन करने काशी आए। मगर भोलेनाथ के दर्शन नहीं देना चाहते थे और वह नाराज होकर केदारनाथ चले गए। पांडव भोलेनाथ के पीछे पीछे केदारनाथ चले गये और पांडवो से बचने के लिए भगवान शिव बैलों का रूप धारण कर बैलों के झुंड में शामिल हो गए। उसी वक्त भीम अपना विराट रूप धारण कर दो। पहाड़ों पर अपना पैर रखकर खड़े हो। बाकी सभी पशु भीम के पैरों के नीचे से चले गये तभी भगवान शिव अन्तर ध्यान होने ही वालो थे भीम ने भोलेनाथ की पीठ पकड़ ली कहते हैं कि केदारनाथ में विराजमान शिवलिंग भगवान भोलेनाथ की पीठ ही है । भगवान शिव भी पांडवों की भक्ति के आगे निकल गए और उन्होंने उन्हें दर्शन दिए। केदारनाथ धाम की स्थापना कब हुई और किसने करवाई इसको लेकर सबसे चर्चित मान्यता यही है कि उसे पांडवों ने बनवाया वह 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा। केदारनाथ में आई भयंकर बाढ़ के बावजूद इस मंदिर को खरोच तक नहीं कहते हैं। जिन छह महीनों में मंदिर के कपाट बंद रहते हैं तब भी मंदिर के अंदर से घंटियां सुनाई देती है और ऐसी मान्यता है कि इन 6 महीनों में स्वयं देवता भगवान शिव की आराधना करते हैं। उनकी पूजा करते हैं। ऐसी महिमा है। केदारनाथ धाम ऐसी पवित्रता है। इस तीर्थ स्थल की वजह आस्थावान हिंदू की है कि इछा है कि वह जीते जी एक बार केदारनाथ धाम जरूर बाबा के दर्शन जरूर करें।
मगर केदारनाथ धाम यात्रा से जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी हैं जो इन दिनों हमारे मन को दुखी कर रही है
जिस पर मैं आपसे खुलकर कुछ कहना चाहता हूं कि आप सब लोग भी पूरे खुले दिल से उसे देखे। जैसा कि मेरे लेख की शुरू में केदारनाथ धाम की महिमा और उसके इतिहास के बारे में संक्षेप में कुछ बताया साथ यह भी बताया कि क्यों वह देश के हिंदुओं के लिए इतना खास है मगर यहां आने वाले बहुत से लोगों के तौर-तरीकों को देख कर मन बड़ा दुखी होता है। .
यही नहीं है कि आज बहुत लोगों ने इस यात्रा को अपने ट्रैवल ब्लॉग और इंस्टाग्राम रील का अड्डा बना दिया है। वह केदारनाथ यात्रा पर ऐसे ही आ रहे हैं जैसे बॉलीवुड वाले अपनी फिल्मों के लिए नया सेट तलाश है। यह वो टूरिस्ट चिपस खाकर उसका रापर फेंकता चलता है। कोल्ड ड्रिंक पी कर कहीं भी खाली बोतल फेंक देता है। माफ करेगा मगर जिसे ना भगवान शिव के बारे में ज्यादा पता है और मैं केदारनाथ धाम के अतीत की कोई जानकारी वहां इसी के आ गया क्योंकि उसी के जैसे उसके चार मंदबुद्धि दोस्तों ने कहा कि भाई नई कार ले ली है। केदारनाथ चलेगा। पहाड़ों में गाड़ी और बढ़िया चलती है। बताइए इससे पहले कि वह सेल्फी प्रेमी और इंस्टाग्राम प्रेमी भी कुछ बोल पाता। उसी के दोस्त उसे याद दिलाते दिल्ली की गर्मी में क्यों पड़ रहा है। जून के मौसम में भी वहां बर्फ होगी और बारिश हो गई तो लाइफ सनोवल भी देखेंगे। लाइफ सनोवल की सुनकर हमारी इंस्टाजीवी के अंदर का छपरी जाग जाता है। उसे ख्याल आता है कि फरवरी महीने में सेल में उसने नई जैकेट भी खरीदी। लेने के बाद अब तक पेनी भी नहीं है। चलो केदारनाथ चलते हैं। भाई की नई थार में गप्पे मारते जाएंगे। मौसम भी बढ़िया होगा। जगह-जगह रुककर सेल्फी लेंगे। फेसबुक पर फोटो डालकर अपने दोस्तों को इंप्रेस भी करेंगे। अपने दोस्तों को इंप्रेस करने की बात सोचते ही हमारा छपरी बेड से उछलकर सीधा पैकिंग करने लग जाता है। अगले ही दिन यह चारों गाड़ी में बैठकर यात्रा पर निकल पड़ते हैं। जैसे तैसे गौरीकुंड तक जमीन की गाड़ी पहुंचती है तो वहां कर उन्हें पता लगता है कि आगे तो 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा 3 साल पहले गुजर नानी फिर मर जाती है जो लौंडे प्यास लगने पर पानी की बोतल फ्रीज से नहीं निकाल सकते और तब तक प्यासे रहते हैं जब तक की मम्मी किसी काम से कमरे में ना आ जाए और उन्हें ही पानी लाने को ना बोल दे। ऐसे ही छपरी को जब यह पता लगता कि 16 किलोमीटर पैदल चलना है तो इसके अंदर बैठे आलसी को मिर्गी आ जाती है। तभी इसका निकम्मा दोस्त आकर खुशखबरी दे, ताकि भाई घबरा मत यहां तो धाम तक जाने के लिए खच्चर भी चलते। खच्चर चलने की बात सुनकर यह चारों खच्चर खुशी से उछल पड़ते हैं।
असली खच्चर को देखकर सेहम जाता है कि इनका चोरों को इतनी दूर तक धोकर कर ले जाना पड़ेगा। कोई मजाक नहीं है। एक बुजुर्ग विकलांग छोटा बच्चा अगर खच्चर घोड़े पर बैठकर धर्म तक जाता है तो भी समझ में आता जब हम देखते हैं कि इस यात्रा में स्वस्थ लोग और जवान लोग भी सिर दर्द और मेहनत से बचने के लिए खच्चर पर बैठकर धाम तक जा रहे हैं तो फिर रोना आ जाता है। समझ मे नही आता की मजबूरी किया है वहां जाने की जीवन में जो भी कुछ पाने लायक है। जीवन में जो भी कुछ सम्मान के लायक है उसे पाने के लिए हमें मेहनत करनी ही पड़ती है। मगर नहीं आज की हमारी सेल्फी प्रेमी और रील की दीवानी जनता शरीर को तेल भर भी कष्ट नहीं देना चाहती थी। अपने कंफर्ट जोन से निकलना ही नहीं चाहती है, लेकिन। मैं कह रहा था कि कुछ गैर जिम्मेदार यात्री तो केदारनाथ आते ही है । जिनकी ना धाम में कोई आस्था होती और ना वो पैदल यात्रा करना चाहते हैं और कहने में कोई हर्ज नहीं है। इन्हीं के चलते केदारनाथ के सफर में सबसे ज्यादा जुल्म घोड़ों और खच्चर पर हो रहा है । मतलब जाने वाली कई जनता आलसी तो है। ज्यादातर खच्चर वाले भी बहुत लालची आप सोचिए। गौरीकुंड से केदारनाथ की जिस 16 किलोमीटर के सफर को एक आम आदमी 1 दिन में आसानी से तय नहीं कर पाता। उसी 16 किलोमीटर के रास्ते में एक खच्चर से चार चार चक्कर लगवाए जाते हैं। उसे दो दो बार अप डाउन करवाया जाता है। वह भी अपनी पीठ पर 70 से 80 किलो वजन का एक इंसान लद कर। इसी के चलते पिछले 2 महीने में केदारनाथ में 100 के करीब खच्चर की जान जा चुकी है। यात्रा के रास्ते पर आपको मरे और बेहोश पड़े काम दिख जाएंगे। मगर अफसोस इन बेजुबान जानवरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। कोई नहीं है। जो ये तय कर सके की घोडे और खच्चर को 1 दिन में कितना चलाया जाए? कोई नहीं है। चेक करने वाला कितनी मेहनत के बदले इन्हें खाने में क्या दिया जा रहा है, अफसोस होता है। यह देखकर पिछले दिनों मेरठ में कमिश्नर मैडम का कुत्ता गायब हो जाता है तो उसे ढूंढने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया जाता है। 24 घंटे में उसे ढूंढ कर भी निकाला जाता और 2 महीने में 100 खच्चर पर मर गए और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं दोस्तों भगवान शिव को तो खुद पशुपतिनाथ कहा जाता है और उन्हीं के दर्शन के लिए अगर पशुओं पर इस तरह का जुल्म किया जाए तो इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है?
इससे बड़ी शर्म की बात और क्या हो सकती है? मगर ऐसा लगता है कि किसी के पास इन सब के बारे में सोचने का टाइम ही नहीं है जो दर्शन करने आ रहे हैं। उनमें से भी बहुतों को यह नहीं पता होगा कि वह क्यों आए हैं उनके लिए यह बस एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन दिल्ली की गर्मी उसे कुछ दिन के लिए और राहत पाने का अड्डा इंस्टाग्राम पर कुछ 100 लाइक्स लाने का एक जुगाड़। इन्हीं जैसो से पैसे कमाने में लगे घोड़े और खच्चर वालों को भी क्या परवाह उनके लिए बस एक मोटा ग्राहक जिससे उन्हें हर हाल में पैसे कमाने वैसे भी 6 महीने का सीजन जितनी कमाई कर सको तो करो उने भी . इस बात की कोई परवाह नहीं है कि जो घोड़े और जानवर एक बच्चे की तरह मेहनत कर उनका पेट पालते हैं। उनके शरीर की भी सीमा सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को भी ज्यादा नहीं छोड़ेंगे तो उसका पेट फट जाएगा। मगर लगता है कि इन लोगों को उसके पेट फटने की कोई परवाह ही नहीं। हर दिन घोड़े और खच्चर मरते जा रहे हैं। उनकी जगह मरने के लिए कुछ और खच्चर को रिप्लेस कर दिया जाता है। खच्चर की मौत पर दुखी होना तो दूर उस बारे में सोचने का भी इनके पास टाइम नहीं है।
और यही सब माहौल केदारनाथ जैसी पवित्र यात्रा को शोभा नहीं देता और न ही भोले बाबा ऐसे संवेदनहीन और नासमझ भक्ति सब करते हैं और ना ही उनके दरबार में इन जानवरों का यू जान कवाना शोभा देता है तो कोई शक नहीं कि दुनिया में हर धार्मिक स्थल अपने आप में एक बाजार भी बनता ही है। खासतौर पर लोकल लोगों की जिंदगी वहां आने वाले इन्हीं जातियों से चलती है। मगर हमेशा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जिस महादेव की कृपा से हम उस पवित्र भूमि में पैदा हुए, जिस भोले शंकर के आशीर्वाद से वहां आए यात्रियों से कमाई कर हम आ रहे हैं। हम भूल कर भी ऐसा कुछ ना करें जिससे सबसे ज्यादा दिल हमारे उस भोलेनाथ का ही दुखी हम दिल्ली मुंबई में बैठे किसी और व्यापारी की तरह तो नहीं हो सकते ना जिसका मकसद सिर्फ और सिर्फ पैसा कमाना है। उसी तरह केदारनाथ आने वाले मेरे दोस्तों आप सफर का आनंद लो नीचे की खूबसूरती का भी मजा लो मगर हमेशा इस बात का ख्याल रखना कि तुम मनाली या मसूरी नहीं। केदारनाथ धाम आए हो। बाकी जगह पर जाकर तुम मन को अशांत करते हुए गाने सुनते हो, दारु पीते हो, मुर्गा खाते हो करो जो करना मगर बाबा के धाम में इंसान आता ही उस मन को शांत करने। उसकी सुनने आता है, उसको साधने आता है। एक बार इस बारे में जरूर सोचना तुम जो कुछ भी गलत करे वह खुद-ब-खुद छूट जाएगा और सिर्फ शिव बाकी रह जाएंगे।
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