उत्तराखंड जागर। जागर का इतिहास। कुमाऊनी जागर। गढ़वाली जागर। जागर की परिभाषा। जागर का अर्थ।

 जागर  (jaagar)

 

जागर देवभूमि उत्तराखंड के दोनों मंडलों में गाए जाने वाला एक लोकगीत है और पौराणिक धर्म व पूर्वजों के समय से चली आ रही यह पूजा जिसके एक रूप को जागर भी कहते हैं जागर यानी एक तरीका जिसकी सहायता से हम देवी देवताओं के अनिष्टकारी शक्ति को मनौती के लिए उन देवी देवताओं का आवाहन करने के लिए जागर लगाई जाती है

जब देवी- देवताओ का आवहन किया जाता है तो स्थानिय देवी देवताओ से निवेदन करते है कि रोग -व्यार्धि से मुक्ति और अनिष्ट से रक्षा व सुख शांति हेतु तथा संकट आने पर हमारी रक्षा करे और हमे आगे का रास्ता दिखाए और हमें न्याय मिल सके


जागर का इतिहास

 
 जागर' गाथाएँ : कातियुर इतिहास का तृतीय स्रोत कुमाऊँ में प्रचलित कातियुर राजाओं की 'जागर' गाथाएँ भी हैं। इनमें कहा गया है कि, प्रारम्भ में कातियुर (कत्यूरी) सत्ता का केन्द्र उत्तरी गढ़वाल में जोशीमठ था। जोशीमठ के 'कंतापुरी राजवंश के राजा आसन्तिदेव ने जोशीमठ से कत्यूर में राजधानी परिवर्तित की। इन गाथाओं से धामदेव तथा ब्रह्मदेव समकालीन विदित होते हैं। इनसे विदित होता है कि कत्यूरी ब्रह्मदेव (बीरमदेव) ने चम्पावती नरेश विक्रमचन्द को परास्त किया था। इन गाथाओं में पाली-पछाऊँ शाखा ('आल') का एक अन्य क्रम प्राप्त होता है :
1. इलणदेव,
2. तिलणदेव,
3. अमरदेव,
4. गभरदेव,
5. नारंगदेव,
6. सुजानदेव,
7. सारंगदेव,
8. सारंगदेव के दो पुत्र–उत्तमदेव तथा बिरमदेव।
 जियाराणी के 'जागर' में जियाराणी के पुत्र धामदेव तथा तुर्क सुलतान के युद्ध का वर्णन है। एक गाथा में कहा गया है कि वैराठ का राजा मालूशाही वीरदेव की अधीनता स्वीकार करता था। परन्तु तत्कालीन इतिहास के लिए मौखिक रूप में चली आ रही 'जागर' गाथाओं पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता है। ये जागर गाथाएँ आसन्तिदेव के अन्तिम तीन-चार वंशजों पर ही केन्द्रित हैं। पुनः, कभी-कभी वे परस्पर विरोधी गाथा प्रस्तुत करते हैं।

                                        तन्त्र-मन्त्र तथा नाथपंथी साहित्य की कुछ पाण्डुलिपियों में कातियुरों के अन्तिम शासकों तथा नाथपंथी गुरुओं के प्रभाव का उखेख मिलता है। इन थियों में 'गुरुपादुका', 'वैद्यमनोत्सव', 'नारसिंह जाप', आदि का उखेख किया जा सकता है। किन्तु ‘जागरों' की भाँति, ये पोथियाँ भी अधिक पुरानी नहीं हैं, और इनमें भी कातियुर राजवंश के कुछ-एक राजाओं का ही नाम मिलता है। कातियुर इतिहास के स्रोत के रूप में उक्त वर्णित सामग्री की समीक्षा करें


जागर क्या है...?

जागर एक प्रकार का देव भूमि उत्तराखंड में गाया जाने वाला बहुत ही महत्व पूण लोक गीत है या कहे की पूजा जिसकी सहायता से हम अपने देवी -देवताओ को याद कर सके या उनका आव्हान कर उनसे न्याय प्राप्त कर सके 


जागर का अर्थ 

जागर जिसका अर्थ है जागना  या जगाना  या कहे कि देवी- देवताओ का  आव्हान कर उन्हें अपने  पास बुलाने के लिए निवेदन करना पड़ता है और लोगो का कहना यह भी है कि ये एक खास प्रकार की तपस्या है 


जागर  meaning in इंग्लिश  = Divine call (ईश्वरीय पुकार)


जागर  mean in hindi    = जागना और जगाना व देवी देवताओं का आवाहन करना


जागर शब्द कहा से आया.......?

जागर शब्द। ये संस्कृत का शब्द है जोकि कालिदास के रंधुश  में रात्रिंनागहरो के दिवाशयः 9 /35 और महाभारत के पर्व प्रसंग में भी जागर शब्द का जिक्र आया है और रामायण जैसे महा काव्यों में भी देवी देवता यह गीत गाते थे और जिस से भगवान का आव्हन कर कारनामों का वर्णन होता है



जागर का विवरण 

जागर गीत जागर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है जिस से जगरी गान गाकर देवी -देवताओ का आव्हन व उदबोधन तथा अवतरण के लिए उनका गुणगान गाये जाते है इसमें जगरी अपने भाषा के माध्यम से विनती करता है इसमें देवी देवता की विशेष जीवनी से संबंधी काहनियो व  मह्त्वपूण तथ्थों एवं जगारी के द्वारा जोड़े जाने वाले अन्याय  प्रक्षेप का  एक अद्भुद  व संपुटीकरण होती है जो जगरी अपने कल्पना की शक्ति के आधार पर अलग अलग रूप में धारण करते रहते है  इस लिए जागर गाथा में देवी -देवताओ से संबंध गाथा के अनेक कथानत्व होते है और पाए जाते है  

जागर लगाते समय जगरी के साथ दो या चार भगार या हयोवर इनके साथ जागर को गाते समय सहयता करते है और कुमाऊ मंडल में जागर गाथा एक दूसरे या दो- दो लोगो के दाल में विभक्त होकर उनमे फ़ाग के रूप में भी गाया जाता है जिसे एक को फगार व दूसरे को भगार ( जागर में जागर की गाथा को गाने वाला प्रमुख गायक के साथ गाने वाले सहायक  को भगार कहते है या कहलाता है 


जागर में जागर की कहानी को बताने वाले तथा इस जागर को करवाने वाले तीन मुख्य लोग होते है तथा जागर में  इन प्रमुख भूमिका का परिचित होना आवश्य्क है 


1 जगरिया 
2 डंगरिया 
3 स्योका  -स्योनाइ 



जगरिया 

 जागर का एक महत्वपूण अंग है जगरिया जो  कि देवताओ  के अद्रृश्य शक्ति व अद्रृश्य आत्माओ को जाग्रत करने का काम करते है और देवताओ को जाग्रत समय जगरी द्वारा देवी -देवताओ की जीवनी व जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण घटनाओ व मानवीयो गुणो  का लोक वाद्य यंत्रो के साथ एक प्रमुख व विशेष गायक शैली को देवी देवताओ के सामने रखकर जाग्रत करते है व डंगरी के शरीर में देवी देवताओ को अवतार करते है  यह के स्थानी  भाषा में जगरी  को दास व गुरु भी कहते है 

ङँगरिया 

यानि वह व्यक्ति जिसके शरीर में देवी -देवता अवतार होते है या उनके शरीर में प्रकट होते है चाहे वो स्त्री व पुरुष दोनों के माध्य्मो  में प्रकट  होते है प्रकट होने के बाद या अवतार होने के बात  उस यक्ति के पास देवी देवताओ  के समान शक्ति  आ जाते है और उनका निर्णय  फलदायी माना  जाता है और परेशान यक्ति को उसकी समस्या का हल मिल जाता है ङँगरिया के लिए अनेक शब्द प्रयोग किये जाते है जैसे की  


स्योनाइ 

यानि जिस यक्ति के घर में जागर व बैसी का आयोजना किया जाता है उस यक्ति के घर में सबसे बड़े व बुजुर्ग और उनकी पत्नी को स्योकार -स्योनाइ के नाम से बुलाया जाता है     

                                                            जगर और बैसी लगते समय जब  देवी -देवताओ अवतार होते है तो उस  समय या उस परिवार में जो कोई भी दुःखी हो व समस्याग्रस्त यक्ति अपनी शंका का समाधान व दुःख  निवार्ण और समस्या का हल पाने के लिए अपने घर से कुछ चावल देवी -देवताओ के थाली में रखते है उस चावल 'दाणी ' के अपने हाथ में लेकर देवी -देवता उस दुखी यक्ति को दुःख का निवार्ण अपने भाषा(शब्द ) में बताते है इस लिए अवतारित देवी -देवता  स्योकार -स्योनाइ शब्द  का इस्तमाल करते है



जागर देव भूमि उत्तराखंड की अभिन्न सांस्कृतिक अंग है और इस पूजा को कुमाऊ मे जागर के नाम से जाना जाता तथा गढ़वाल मे धडियाला के नाम से जाना जाता है और निम्न नाम से भी जाना जाता है जैसे -:


1 जागर

2 बैसी

3 रख्याल 

4 जागा और आदि



जागर को दो रूप मे आयोजन किया जाता है


1 बाहरी जागर

2 भीतरी जागर


बाहरी जागर यह जागर आमतौर पर बहुत विस्तार पूर्वक होता है इस बाहरी जागर मे डंगरियो की संख्या पांच या पांच से अधिक होती है और इस बाहरी जागर की बात करे तो इस की समय अवधी एक दिन से लेकर तीन दिन, पांच दिन, साथ दिन, ग्यारह दिन, बाईस दिन की बैसी से लेकर यह जागर 3 महीने और 6 महीने तक चलती है जागर को लगाने से पहले देवी देवताओं का अवतण करने वाले को आमंत्रित निमंत्रण दिया जाता है जैसे कि जगरिया,डंगरी,पस्वा और समस्त क्षेत्र के लोगों को भी आमंत्रित किया जाता है जागर लगाने के लिए एक मुख्य स्थान पर (अग्नि का कुंड) यानी एक धुणी लगाई जाती है और उस धुणी की सुबह शाम धूपबत्ती व पूजा किया जाता है धुणी के सामने की ओर डंगरीयों के लिए एक मुख्य स्थान लगाया जाता है और इसी स्थान के सामने की ओर जिन्हें हम जगरी या 'दास ' बोलते हैं यानी गाथा गायक के लिए एक स्थान लगाया जाता है और अन्य स्थानों पर क्षेत्र के लोग बैठते है।



 2 भीतरी जागर


 जिसके नाम से ही पता चल रहा है की ये जागर घर के अन्दर लगती है ये जागर बाहरी जागर से भिन्न तथा अधिक विस्तारित नहीं होता है और ये जागर काफी छोटी होती है और इस जागर की विधि विधान की बात करें तो काफी छोटी और ना के बराबर होती है और इस जागर की समय अवधि के बारे में जाने एक या दो दिन से अधिक नहीं होती है इस भीतरी जागर को भवल नाथ जज्यू के नाम से भी जाना जाता है सबसे मुख्य बात इस जागर की वाद्य यंत्र की बात करें तो हम जागर को थाली व डमरु से ही गाया व लगाया जाता है




जागर मे तीन प्रकार के भेद होते है ।

  1 भूत प्रेत संबंध जागर
2 देवी देवताओं संबंध जागर
3 स्थानीय राजवंशो संबंध जागर



1. ¹ भूत प्रेत संबंध जागर = जब किसी व्यक्ति के शरीर मे भूत प्रेत या देवता अवतण होते है वह यक्ति अपने अल्प मृत्यु के बारे ने या भटकती आत्मा को शांति प्राप्त करने के लिए या अपनी इच्छा को पूर्ण करने के लिए पुरखो के पास भेजा जाता है तथा उस यक्ति के अन्तिम क्रिया कर्म भी किया जाता।है इस जागर मे ।

  2 देवी देवताओं संबंध जागर =यानि दूसरे देवी देवता सम्बन्धी जागर लगाना जैसे कि सर्वभौमिक देवी देवताओं की उदाहरण के लिए हनुमान, काली माँ, नरसिंह , शिवपुराण, रामायण आदि और दूसरे स्थान के देवी देवता जैसे हरु हित, गंगानाथ, ग्वल , सेम गढ़ देवी आदि है और जंगलो के देवी देवता मे एडी, आचरी, परि, रमौल, धुरमल , चोमुआ, बौधाण आदि

3 स्थानीय राजवंशो संबंध जागर = ये जागर भी तीन प्रकार की होती है

1 कत्युर
2 चंद्र
3 राजवंशी जागर

जागर के वाद्य यंत्र
जागर मे प्रयोग किये जाने वाले वाधयंत्रो को चार श्रेणी मे विभक्ति किया जाता है

1 हुडकि जागर = यानि इस जागर मे गाये जाने वाला जागर की शैली हुडकि के साथ गाई जाती है और इने ख्याल भी कहते है

2 डमरू जागर = यानि इस जागर मे गाये जाने वाली शैली डमरू के साथ गाई जाती है


3 गडेली जागर इस जागर की वाद्य शैली थोड़ी सी अलग है इस जागर मे तांबे की थाली को बजाकर जाकर जागर किया जाता है
Jaagar



4. मुरय जागर किस जागर की मुख्य विशेषता यह है कि पूरे साज बाज के मृदंगो के साथ गाया और बजाया जाता है और इस जागर को झाँझ शैली के साथ भी गाया जाता है
 Make by: aashu bora








बिरती 




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