उत्तराखंड का बहु-कुलों राजवंश का इतिहास। बहुराजकता का काल। भाग -2

 गंगोली क्षेत्र का मणकोटी राज्य 

 इनकी राजधानी मणकोट में थी। गंगोलीहाट इनकी प्रमुख बस्ती थी। यह ठकुराई डोटी राज्य के अधीन थी। कालान्तर में, चन्दों द्वारा इसे हस्तगत कर लिया गया।


काली कुमाऊँ के खश राजा 

काली कुमाऊँ के खश राजा कहते हैं, इस क्षेत्र पर बीजड़, जीजड़, आदि पन्द्रह खश राजाओं ने प्रायः ८६६ ई० से १०६५ ई० तक शासन किया।


कमादेश (काली-कुमाऊँ) का सिंह वंश

कमादेश (काली-कुमाऊँ) का सिंह वंश शिलालेख के अनुसार, कमादेश' (काली का पूर्वी अञ्चल) पर सपादलक्षशिखर के स्वामी अशोकचल्ल के सामन्त पुरुषोत्तमसिंह एवं उसके पूर्वजों का शासन था। उसने अशोकचल्ल तथा किसी छिन्द-नरेश की सहायता से बोध-गया में गन्धकुटी का निर्माण किया था। यदि उत्तराखण्ड पर अशोकचल्ल के अधिकार की तिथियों को आधार माने तो, इस वंश ने कमादेश पर प्रायः ११८० ई० से १२१० ई० तक शासन किया होगा। इस वंश की राजधानी सम्भवतः चक्रवाल में थी।


चम्पावत का चन्द राजवंश

काली नदी के निचले अञ्चल में, प्रारम्भ में "चन्दवंश का प्रथम ऐतिहासिक राजा थोहरचन्द (१२६१-७५ ई०) डोटी के रैका राजा का एक सामन्त मात्र था।" प्रारम्भ में अभयचन्द तथा तत्पुत्र ज्ञानचन्द भी रैका राजा के सामन्त थे। चन्दों की राजधानी तब चम्पावती (वर्तमान चम्पावत) थी। राजनीतिक प्रभुत्व के लिए, चन्दों का संघर्ष रैका राज्य से चलता रहा, जिसमें अन्ततः चन्द विजयी हुये। कुमाऊँ के अन्तिम स्वदेशी राजवंश चन्दों के इतिहास पर आगे एक पृथक् अध्याय में विस्तार से विचार किया गया है।

केदारभूमि (गढ़वाल)

में परमार, जो कार्तिकेयपुर-नरेशों के काल में उनके सामन्त थे, सर्वाधिक शक्तिशाली होते जा रहे थे। उन्होंने अपने पड़ोसी कुछ अन्य गढ़ों को विजितकर, चाँदपुरगढ़ राज्य को विस्तृत करने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी थी। परन्तु केदारभूमि में अभी अनेक पुराने राज्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये हुए थे। इन लघु राज्यों तथा उनके राजवंशों के विषय में हमारा ज्ञान अधूरा है। परन्तु इतना निश्चित है कि बावन गढ़ों में से प्रधान-प्रधान गढ़ (Hillforts) इनकी सत्ता के केन्द्र थे। बाड़ाहाट, भिल्लंग, नागपुर, मायापुर-हाट, आदि इसी प्रकार के लघु राज्य थे। इन गढ़पतियों अर्थात् ठकुरियों के राज्य 'मण्डल' कहलाते थे, जो वर्तमान परगनों के पूर्व-रूप थे। 'मण्डल' इकाई के अधीन 'पट्टियाँ' थीं। पश्चिमी भाग के तत्कालीन इन छोटे-छोटे स्वतन्त्र शासकों के इतिहास के लिए उनके गढ़ों एवं मण्डलों का अध्ययन आवश्यक है

मानसखण्ड (कुमाऊँ)

(कुमाऊँ) में, मूल कातियुर राज्य (तथा-कथित कत्यूरी राज्य) आगे विघटित होकर अग्रलिखित अनेक शाखाओं में विभक्त हो गया था, जिन्होंने द्वाराहाट से लेकर डोटीगढ़ तक अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिये थे :

1-: कत्यूर-बैजनाथ के परवर्ती कातियुर राजा चौदहवीं-पन्द्रहवीं शती ई. के उत्तरार्द्ध तक अपनी वंशानुगत राजधानी रणचूलाहाट में शासन करते रहे। परमार राजा के पड़ोस में स्थित इस शाखा पर प्रथम आघात परमार राजा अजयपाल द्वारा हुआ।"रामायणप्रदीप" (बाल०, २१-२२) में वर्णित है कि राजा अजेयपाल कूर्माञ्चल के कैन्तुरों से अपना स्वर्ण सिंहासन छीनकर श्रीनगर ले आया था। अजयपाल की इस निर्णायक विजय के फलस्वरूप कत्यूर की यह उपत्यका तब, अस्थायी रूप से ही सही, परमार राज्य का अङ्ग बन चुकी होगी। कालान्तर में, इस शाखा का उच्छेद चन्दों के द्वारा हुआ।

द्वाराहाट

2-: द्वाराहाट में तेरहवीं-चौदहवीं शती ई० में कत्यूरियों की पाली-पछाऊँ, शाखा शासन करती थी। उसका शासित प्रदेश रामगङ्गा के तटों पर फैला था। इस शाखा के गुर्जरदेव (शाके ११७६=१२५७ ई०), सुधारदेव, (शाके १२३८, १२४०), मानदेव (शाके १२५६), सोमदेव (शाके १२७१, १२७६) तथा विजयदेव राजाओं के नाम अभिलेखों में मिलते हैं। परन्तु ये नाम पाली-पछाऊँ वली में नहीं मिलते।

3-: वर्तमान पिथौरागढ़ जनपद में असकोट ठकुराई के शासक बार' कहलाते थे। असकोट राजावली के अनुसार, त्रिलोकपाल के पुत्र अभयपाल ने १२७६ ई० कत्यूर से आकर इस राज्य की स्थापना की थी। परन्तु असकोट के पालवंश के शोधकर्ताओं का मत है कि इस राज्य की स्थापना नागमल्ल ने की थी जिसका सुस्पष्ट प्रमाण शाके ११६० (१२३८ ई०) का नागमल्ल का अकु-शिलालेख है। रजबार भारतीपाल के घुनसेरा-ताम्रपत्र, शाके १३१६ (१३६४ ई०) में स्पष्टतः उसने राजा नागमल्ल तथा विक्रमपाल को अपना पूर्ववर्ती राजा माना है। इस वंश के १२३८ ई० से १६२३ ई० तक के आठ अभिलेखों में नागमल्ल, निर्भयपाल (निरैपाल), भारतीपाल, तिलकपाल, कल्याणपाल, महेन्द्रपाल, आदि रजबारों के नाम मिलते हैं। दीपचन्द्र चौधरी के अनुसार, सन् १६२४ ई० के पश्चात् असकोट के पाल चन्दों के अधीन हो गये।

4-: काली के पश्चिमी भाग से लेकर पश्चिमी नेपाल में डोटी राज्य की स्थापना १२७६ ई० के आसपास अभयपाल के अनुज निरञ्जनदेव (निरञ्जनमल्लदेव) ने की। इन राजाओं की उपाधि 'महाराजा रैका' थी जो कातियुरों (कत्यूरियों) की मल्ल शाखा के थे, जिन्हें डोटी का यह भाग मिला। समस्त कातियुर-शाखाओं में डोटी-सीरा के रैका राजा ही सबसे शक्तिशाली हुये।

5-: सीरा के दक्षिण में सोर (जनपद पिथौरागढ़) के बम (ब्रह्म) राजा भी डोटी की कातियुर शाखा के थे। एटकिन्सन के अनुसार वे डोटी के राजपरिवार के कुँवर होते थे। उनकी राजधानी पिथौरागढ़ के पास उदयपुर थी।

6-: काली-कुमाऊँ में लोहाघाट के पास सुई राज्य की स्थापना ब्रह्मदेव द्वारा हुई थी।

7-:कोसी तथा सुआल-घाटी में, खगमर की लघु ठकुराई।

8-:बिसौद की लघु ठकुराई।

कातियुर वंश (तथा-कथित कत्यूरी वंश) की विभिन्न शाखाओं तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों पर अभी अन्वेषण की आवश्यकता है। क्योंकि मात्र गाथाओं तथा वंशावलियों पर अधिक विश्वास नहीं किया जा सकता।


                            सारांश में, कार्तिकेयपुर तथा वैद्यनाथ-कार्तिकेयपुर शासकों के पराभव के उपरान्त, मध्य हिमालय में राजनीतिक एकता के विघटन के कारण प्रायः दो-तीन सौ वर्षों तक बहुराजकता का काल रहा। यह तथ्य महत्त्वपूर्ण है कि अभी ‘गढ़वाल' तथा 'कुमाऊँ' नाम अस्तित्व में नहीं आये थे। 'कमा' नाम ही तेरहवीं शती में प्रचलित था। उत्तराखण्ड के तत्कालीन राजनीतिक परिदृश्य से इतना स्पष्ट होता जा रहा था कि पश्चिमी भाग में चाँदपुरगढ़ के परमार (पँवार) तथा पूर्वी भाग में चम्पावती के चन्द ये दो राजवंश शक्ति की दौड़ में सबसे आगे बढ़ रहे थे।

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