घी संक्रांति देवभूमि उत्तराखंड में बनाए जाने वाला एक ऐसा खास त्यौहार जिसके पूरे उत्तराखंड में कुछ अलग ही महत्व होता है। धीसराती त्योहार की बात करें तो यह त्योहार श्रावण का महीना खत्म होने के बाद जो नए महीने का आगाज होता है यानी {भाद्रपक्ष माह (भादों)} के महीने का पहले दिन को इस त्यौहार के रूप बनाया जाता है
अगर इस त्यौहार को देखे तो यह विशेष रूप से बनाया जाता है। जहाँ त्यौहार के दिन लोग सुबह-सुबह अपने देवी,देवताओं,इष्ट देवताओं को पूजते हैं फिर देवी,देवताओं,इष्ट देवताओं को भोग लगाया जाता है भोग लगाए जाने के बाद लोग अपने कुल देवता, देवी देवता, इष्ट देवता और भगवानों को ओग देते हैं। इस ओग में देवताओं को गडेरी के पत्तों में देवी देवताओं को सब्जियों के ओग अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार के सबसे बुजुर्ग महिला परिवार की सभी लोगों के सर पर घी रखकर बुजुर्ग महिला सभी लोगो आशीर्वाद मे स्वस्थ रहे वह आपकी शरीर में शक्ति बनी रहे। (भल रे जवान तगड़ी बनी रे) यह कहकर आशीर्वाद देती है
इस त्योहार के बारे में कई बुजुर्गों का यह मानना था कि यह त्यौहार इसलिए बनाया जाता है आज ही के दिन से उपराउ की फसलो पकना शुरू हो जाता है और आज ही के दिन से ऊपराऊ फसलों का कटान शुरू हो जाता है और तराई क्षेत्र तक जाता है। इसलिए परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला परिवार में सभी सदस्यों के सर पर घी रखकर(भल रे जवान तगड़ी बनी रे) यह आशीर्वाद इसलिए देती थी कि अब से परिवार के सभी सदस्यों को खेतों में काम करने वह मेहनत करने जाना पड़ता था इसीलिएभाद्रपक्षके महीने पहले दिन घी सक्रांति बनाते हैं।
इस त्योहार के बारे में के बुजुर्गों का यह भी मानना था कि उत्तराखंड के देवी देवताओं के लिए हर महीने में एक पूजा या एक सक्रांति जरूर होनी चाहिए इसीलिए बुजुर्ग ने यह घी सक्रांति त्योहार का निर्माण किया और इस सक्रांति को हर्षोल्लास से बनाई जाने लगा
इस त्यौहार के बारे में कई बुजुर्गों के यह तथ्य भी थे। भाद्रपक्ष के महीने के पहले दिन उत्तराखंड के देवी देवताओं को ओग देने की रिवाज होती है और इस रिवाज में देवी देवताओं को खेतों में हुई सब्जियों का ओग देवी देवताओं को एक खास रूप में दिया जाता है। बुजुर्ग कहते हैं कि देवी देवताओं को इस महीने का चढ़ावा ओग रूप में दिया जाता है।
कई बुजुर्ग का यह भी मानना था की भाद्रपक्ष के महीने का मौसम कभी भी अचानक से बदल जाता है। इस बदलाव से फसलों को नुकसान ना हो इस लिए खेतों की सब्जियों का देवी देवताओं को ओग दिया जाता है। घी सक्रांति बनाई जाती है। और देवी देवता से यह प्रार्थना की जाती है कि हमारी फसलों को नुकसान ना हो
कई लोगों का यह मानना है कि अगर इस सक्रांति में जितने भी घी का सेवन नहीं किया तो वहां अगले जीवन में घोंघे (गनेल) का रूप जन्म लेना पड़ता है। सक्रांति मे घी का सेवन लाभदायक होता है
देवभूमि उत्तराखंड में बनाए जाने वाला यह त्यौहार पूरे उत्तराखंड में अलग-अलग तथ्यों वह अलग अलग रूप में इस त्यौहार को इसी दिन बनाया जाता है।..............
Nice
जवाब देंहटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंATI Sundar
जवाब देंहटाएंकिया जानकारी है ।
जवाब देंहटाएंवाह किया जानकारी है ।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी भेजें
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