जल ही जीवन है।..
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और जीवन खतरे क‚ ओर बढ़ता जा रहा है|...पृथ्वी में सबसे ज्यादा मात्रा में जल है। लेकिन उसका 96% प्रतिशत भाग खारे पानी का है। पीने योग्य पानी क‚ मात्रा प्रतिदिन घटते जा रही है और अगर ऐसा ही चलता रहा तो जल्द ही हम लोग जल संकट से जूझने वाले है। और लंबे समय तक बारिश न होने के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों का जलस्तर काफी गिर गया है, इस कारण लोगो को प्राकृतिक जलस्रोतों में पानी भरने के लिए लंबा इंतजार करना पढ़ रहा है किन्ही स्थानों में प्राकृतिक जल स्रोतों के सूखने के बाद लोगो को नदियों के पानी से जीवन यापन करना पड़ रहा है। मैदानी इलाको की पानी की जरुरत पूरी करने के लिए ग्रामीणों को पहाड़ो के साये में रोज पानी की किल्लर से जूझना पड़ता हैI
आलम यह है की दिन निकलते ही महिलाएं, बच्चे रोजमरा की जरुरत के कार्य के लिए पानी जुटाने के‚ जददोजहद मे जुट जाते है। 'कई कई किलोमीटर दूर प्राकृतिक स्रोतों से पानी लाने की कवायद, कही घंटी लाइन मे लगने के बाद पानी ढोकर घर पहुंचाने की जद् -दोजहद करते है। और फिर नये दिन के साथ फिर यहि जददोजहद शायद ऐसा लगता है कि समय एक जगह में रूक सा गया है। या किसी ने समय को निश्चित दिन मे रोक लिया हैं
ये समय किसने रोका........?
- क्या आपने या हमने
- क्या सरकार ने / या इस प्रकृति ने
क्या कारण हो सकता है शायद आप सभी के मन में अलग-अलग बात आ रही होगी, क्या पता वह बातें सच्चाई को बयां करे।
यदि उत्तराखण्ड के संदर्भ बात करें तो हाल ही में अमर उजाला में प्रकाशित खबर में बताया गया कि वैज्ञानिकों के मुताबि क कोसी नदी वर्ष1992 की तुलना में पानी का स्तर लगभग 16 गुना काम हो गया है। जहाँ गंगा, यमुना, अलकनंदा, मदाकिनी पिंड़र, काली, सरयू आदि नदियों मे भी पानी कम हो गया हैं। यदि हम इस आंकड़े पर नजर डाले तो, मिलाम ग्लेशियर 16.70 मीटर प्रति वर्ष की दर से पीछे , खिसक रहा हैं , जबकि पिडारी ग्लोशियर 23.47 मीटर गंगोत्री ग्लेशियर 18 से 22 मीटर, तिपरा -बैंक ग्लेशियर 3.7 मीटर ढोकरानी ग्लेशियर 18 मीटर और दूनागिरी ग्लेशियर 3 मीटर प्रति वर्ष के दर से पीछे खिसक रहा हैग्लेशियरी के खिसकने का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल व जलवायु परिवर्तन है। जिस कारण पहाड़ तेजी से गर्म होते जा रहे हैं।यहां न केवल गर्मी ज्यादा पड़ रही है। बल्कि पहले की अपेक्षा बारिश भी कम हो रही है। एक प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि पिहले साल प्रदेश मे 13.5 cm बारिश कम हुआ है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलो में भी बारिश अब कम हो रही है। ग्लेशिया का पिघलना और जहाँ नदीयो मे पानी की मात्रा भी कमी आ रही है । तो वही बारिश का कम होना नौली -धारो सहित अन्य प्राकृतिक स्त्रोतो भी सुख रहे है। प्राकृतिक स्त्रोतों के सूकने का कारण अनियोजित विकास.........और बढती जनसंख्या के साथ चौड़ी पत्ती वाले पेडो का कटान भी है। जिस कारण उत्तराखण्ड के कई इलाको में जल संकट गहरा रहा है।नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बताया गया है कि भारत में करीब 5 मिलियन स्प्रिंग्स हैं, जिनमें मे 3 मिलियन स्प्रिग्स इंडियन हिमालय रीजन में है। उत्तराखण्ड मे लगभग ढाई लाख नौले-धारे व अन्य स्प्रिंग्स हैं जिन पर पर्वतीय गांव पानी के लिए निर्भर है लेकिन उत्तराखंड मे 12 हजार से ज्यादा नौले -धारे व स्प्रिंग्स या तो सूख गए हैं। या सूखने की कगार पर है। या तो टुटने की कगार मे है। अकेले अल्मोड़ा जिले मे 83% प्रतिशत स्प्रिंग्स सूख गए है। और बचे 17% नौले व स्प्रिंग्स जिसमें वह भी टूटने व बंजर होने के कगार पर या घटते हुए जल स्रोत के कगार पर है जो कभी भी सुख सकते हैं
उत्तराखंड मे 13 जनपद हैं। जिसमे से 11 जनपद सूखे के मार के साथ जल संकट को भी झेल रहे है।
अल्मोड़ा/-
यदि हम अल्मोड़ा जिले के संदर्भ में बात करें तो अमर उजाला में प्रकाशित यह रिकॉर्ड बताता है कि यहां पर्वतीय क्षेत्रों के अन्य जिलों की तरह ही अल्मोड़ा जिले के लोगों को भी सालभर पेयजल संकट से जूझना पड़ता है। अधिकतर घरों में पानी जुटाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है। किल्लत वाले इलाकों में खासकर महिलाओं का पूरा समय पानी जुटाने में लग जाता है। कई ग्रामीण इलाकों में दो से तीन किमी पैदल दूरी से लोग पानी लाते हैं। मवेशियों के लिए पानी जुटाना बड़ा मुश्किल साबित हो रहा है। एक यह रिकॉर्ड बताता है कि जिले में वर्तमान में 1,10,100 परिवार अब भी पेयजल कनेक्शन से वंचित हैं। इनमें से कई इलाके ऐसे हैं जिसमें हर रोज पानी के टैंकर जाते हैं उदाहरण के तौर पर कई गांव है जिनमें से एक द्वाराहाट ब्लॉक भी है जिसमें हाल ही में 32 दिन का भूख हड़ताल हुआ था सिर्फ एक पीने के पानी के लिए इतना बड़ा भूख हड़ताल हुई थी और कई गांव ऐसे भी हैं जहां पानी की कोई किल्लत नहीं है वे केवल गिने चुने गांव ही होंगे ये बात तो अल्मोड़ा जिले की थी।नैनीताल /-
अब आप जानेंगे नैनीताल जिले के बारे मे नैनीताल कहे तो, जिस में एक बहुत बड़ा ताल समाया है जिस में बहुत सारा पानी है। पर क्या करें नैनीताल के ग्रामीण इलाकों में पानी नहीं![]() |
॥ हर घर नल।। |
सरकारी योजना के हाल
॥ हर घर नल और उसमें स्वत्ता जल जैसे सरकारी दावों के बावजूद जिले के पर्वतीय क्षेत्रों में आज भी सैकड़ों परिवार पीने के पानी के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों पर निर्भर है। नैनीताल के कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जो पिछले कई महीने से पेयजलापूर्ति बाधित है। ओखलकांडा ब्लॉक के मल्ला ओखलकांडा, भीमताल के बूढाधूरा, कर्कोटक, भांकर, बेलुवाखान, गांजा, ज्योलीकोट, भल्यूटी समेत धारी के पहाड़पानी और सेलाखेत में पेयजलापूर्ति के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में लोगों को आज भी दो सौ से पांच सौ मीटर दूर स्थित प्राकृतिक स्रोतों से सिर पर पानी रखकर लाने को विवश हैं।
पिथौरागढ़/-
पिथौरागढ़ पहाड़ों में भरपूर पानी होने के बाद भी पहाड़ के लोगों को पेयजल के लिए परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। गंगोलीहाट विकासखंड के वेलपट्टी क्षेत्र की 27 ग्राम पंचायतें पेयजल किल्लत से परेशान हैं। यहां शादी विवाह आदि समारोहों के लिए प्राकृतिक जल स्रोतों से पानी का प्रबंध करना पड़ता है। ग्रामीणों और महिलाओं को पानी के लिए आधा किमी से अधिक की दूरी तय करनी पड़ती है। मुनस्यारी विकासखंड के एक दर्जन से अधिक लोग आधा से एक किमी पैदल चलकर पानी जुटाने को मजबूर हैं। उत्तराखंड की सरकार को समस्या दिखती है पर सरकार को इनकी हकीकत कभी नहीं दिखती।बागेश्वर/-
बागेश्वर। पूरे मैदानी भागों की प्यास बुझाने वाले पहाड़ के बाशिंदे खुद पानी को तरस रहे हैं। अक्सर उन्हें पानी के लिए काफी दूरी तय करनी पड़ती है। इस मामले में सबसे ज्यादा परेशानी मातृ शक्ति को उठानी पड़ती है। जिला मुख्यालय स्थित तहसील रोड, मंडलसेरा समेत तमाम इलाकों में आए दिन पानी की दिक्कत रहती है। इसके अलावा ग्वाड़ गांव, दाणूथल सानिउडियार, दफौट, गुरना, जेठाई, कांडाकमस्यार, दफौट, पुंगर घाटी, पिंडर घाटी और दानपुर आदि ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मीलों दूर धारों, नौलों और गदेरों से पानी भर रहे हैं। क्या इस मातृशक्ति को जीवन जीने का हक नहीं है। क्या वह पूरे जीवन भर पानी का बोझ उठाते रहे। क्या सरकारों को नहीं दिखता है इन माताओं की पीड़ा......?चंपावत/-
चंपावत। यमुना नदी किनारे बसी दिल्ली मुख्य रूप से उत्तराखंड के पानी से प्यास बुझाती है लेकिन उत्तराखंड के पहाड़ वासी पानी को तरस रहे हैं। चंपावत जिले में 44882 परिवार ऐसे हैं, जिन्हें पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए दो सौ मीटर से डेढ़ किमी तक दौड़ लगानी पड़ती है। जिले में हर परिवार को रोजाना औसतन मात्र 95 लीटर पानी मिल पा रहा है,जबकि कायदे से 200 लीटर चाहिए। जिले के चार नगरीय क्षेत्रों में 81 लाख लीटर पानी की रोजाना जरूरत है, लेकिन उपलब्धता इस वक्त 40 लाख लीटर हो पा रही है।यह चंपावत का एक काला सच है जहां ग्रामीण लोगों को पानी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है क्या यह ठोकरें कभी खत्म होगी......?रुद्रप्रयाग/-
रुद्रप्रयाग ढाई लाख आबादी वाले रुद्रप्रयाग जिले की 35 फीसदी आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। जखोली ब्लॉक मैं ग्राम पंचायत रौठीया मे 200 परिवार निवास करते हैं, जिन्हें हफ्ते में तीन दिन पानी मिलता है भरदार पट्टी के सौराखान, घेघडखाल, रौठीया समेत 18 ग्राम पंचायत और सिलगढ़ पट्टी के 12 ग्राम पंचायत डेढ दशक से दूरस्थ जल स्रोतों की दौड़ लगा रहे हैं। इन ग्राम पंचायतों के लिए वर्ष 2006 में जवाड़ी - रोँठीया व तैला -सिलगढ़ पेयजल योजना स्वीकृत हुई थी जो पूरा नहीं हो पाया था जिस कारण सिलगढ़ पट्टी के पंद्रोला गांव, मंदाकिनी के किनाने बसे होने के बाद भी प्यासा है। प्रत्येक परिवार के एक व्यक्ति की नदी से पानी जुटाने की जिम्मेदारी रहती है।.......उत्तरकाशी/-
उत्तरकाशी। यूं तो जनपद में पेयजल आपूर्ति के लिए छह सौ से अधिक गांवों में पेयजल योजनाओं का निर्माण कराया गया है। लेकिन प्राकृतिक स्रोतों से बनी लंबी दूरी वाली अधिकांश योजनाएं मानसून सीजन में क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। पर्याप्त जल संसाधन की मौजूदगी के बावजूद इस समस्या के पीछे जल का समुचित प्रबंधन नहीं होना प्रमुख कारण है। साथ ही गर्मियों में योजनाओं के जलस्रोत सूखने पर भी पेयजल संकट गहरा जाता है। ग्रामीण दूरस्थ प्राकृतिक स्रोतों से पानी ढोने को मजबूर हैं। शहरी क्षेत्रों में भी पेयजल योजनाएं उपभोक्ताओं की प्यास नहीं बुझा पा रही हैं। अब ग्रामीणों की उम्मीदें केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन पर टिकी हैं। इसके लिए विभागीय स्तर पर प्रयास हो रहे हैं। क्या इस प्रयास से ग्रामीणों की उम्मीदें का प्यास बुझेगी ................?चमोली/-
चमोली जिले के 615 गांवों में से करीब 65 गांव पेयजल किल्लत से जूझ रहे हैं। कई जगह जल संस्थान की पेयजल योजनाओं के स्रोत पर पानी का स्तर कम होने से ग्रामीणों को प्राकृतिक पेयजल स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। पीपलकोटी के समीप श्रीकोट, नैल, कुडाव, पलेठी कौज-पोथनी, मोल्टा, तल्ली टंगणी और मल्ली टंगणी के साथ ही कई गांवों में पेयजल किल्लत है। पलेठी गांव में 250 परिवार हैं जिन्हें आधा किलोमीटर दूर प्राकृतिक जल स्रोत से पानी लाना पड़ रहा है। श्रीकोट गांव में वर्षों पुरानी पेयजल योजना दम तोड़ चुकी है। वहीं जल संस्थान के ईई पीके सैनी ने बताया कि जिन गांवों में पेयजल किल्लत है, वहां जल जीवन मिशन में पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है। इस पर कार्य भी शुरू कर दिया गया है। क्या योजना संपूर्ण होने के बाद उन परिवारों को जल के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ेगा या इस परियोजना के पूरे होने के बाद उन परिवारों को फिर भी वही संघर्ष करना पड़ेगा क्या इन परिवारों को योजना कुछ लाभ मिल पायेगा ....?पौड़ी/-
पौड़ी : मे कुछ ऐसी भी गांव है जहां लोगों को 3 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है. ऐसे 7 गांव हैं जहां ऐसी समस्याएं हैं। जयहरीखाल ब्लाक के अंतर्गत 90 के दशक में बनी बिलंगी-गजवाड़-बांसी जर्जर पेयजल लाइन के अधिकतर समय क्षतिग्रस्त रहने से बांसी और गजवाड़ के ग्राम पंचायत के सात गांव बांसी, बोरगांव, सिमलखेत, बटलबाड़ी, घिल्डियाल और अखरैणा के ग्रामीण करीब तीन किमी. दूर से सिर पर पानी ढोने को मजबूर हैं। शायद इस देव भूमि उत्तराखंड की यह एक रिवाज हो गई है कि ग्रामीण इलाके के लोगों को जल के लिए संघर्ष करने का कहीं दूर से जल ढोने एक रिवाज सी बन गई है जो पिछले कई सालों से चली आ रही है..... क्या यह रिवाज कभी खत्म होगी क्या यह जल संकट खत्म होगा?
यह तो कुछ जिले थे। जिनके बारे में लोग जानते थे। आप सोचिए कि ऐसे कितने गांव कितने कस्बे कितने परिवार होंगे जो इस जल संकट से जूझ रहे होंगे क्या आपको पता है...?
यह तो कुछ जिले थे। जिनके बारे में लोग जानते थे। आप सोचिए कि ऐसे कितने गांव कितने कस्बे कितने परिवार होंगे जो इस जल संकट से जूझ रहे होंगे क्या आपको पता है...?
प्रतिदिन एक व्यक्ति कितने पानी का उपयोग करता है
☆-: टॉयलेट में करीब =20 लीटर
☆-: कपड़े धोने में =55 लीटर
☆-: घर साफ करने मे =10 लीटर
☆-: बर्तन धोने =10 लीटर
☆-: खाना पकाने में =5 लीटर
☆-: पीने के लिए =5 लीटर
कुल = 130 लीटर
यदि एक व्यक्ति को (130)लीटर पानी चाहिए एक परिवार मैं कितना पानी लगता होगा, यदि संकट से जूझ रहे लोग पानी लाने दो-तीन किलोमीटर दूर प्राकृतिक जल स्रोत जा रहे हैं। तो आप समझ सकते हैं कि उन महिलाओं को कितना पानी ढोना पड़ता होगा। शायद से पूरा दिन जद्दोजहद करके जल की कमी को पूर्ण करते होंगे उन महिलाओं को कितना कष्ट उठाना पड़ता होगा......... क्या आप जानते है ........?
बिल्कुल नहीं............?
||मनुष्य मिटा रहा अपनी हाथों की तकदीर||
||रोज कर रहा व्यर्थ कल नहीं मिलेगा वही जल||
![]() |
नल को देखते बच्चे |
तस्वीर मे बच्चे इन खाली बर्तन को टुकुर टुकुर कर के देख रहे हैं।कि ये बर्तन कब तक भरेंगे और जो बर्तन खली है।वो इस सूखे नल को टुकुर टुकुर कर देख रहे है कि इस नल से पानी कब आयेग। दिन गुजरे महीने गुजर गए पर नहीं आया कभी पानी। बचा सिर्फ एक खाली नल जिसे सब ने देखा और सारा कसूर नल पर डाल दिया, पर नल ने भी उंगली की और हम को देखा और सारा कसूर हम पर डाल दिया। फिर नर ने कुछ पूछा कि
•घटते हुए जल स्रोत का कारण कौन है।.....?
•जंगलों में आग लगाने वाला कौन है....?
•जंगलों को काटने वालाा कौन है.....?
•ग्लोबल वार्मिंग का कारण कौन है...?
• नदियों का खनन करने वाला कौन है.....?
क्योंकि इसी कारण नल ने हमको देखा
आखिर क्यों इस जल संकट के बारे मे लिखना पड़ा क्यों एक एक लोगो को जल संकट के बारे मे आगाह करना पड़ रहा है। आखिर क्यो.........?
क्या हो गया इस देवभूमि को...........
जय ईस्ट गोरिया
कहा गया पहाड़ो का पानी
जवाब देंहटाएंइस पर ध्यान देना की आवश्यकता है बहुत बढ़िया प्यास कर रहे हैं
jay ho dev bhoomi
जवाब देंहटाएंHan Bhai shi baat h
जवाब देंहटाएंअद्भूत ❣️🔥🤟❣️
जवाब देंहटाएंBilkul shi..
जवाब देंहटाएंYes bro its correct
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही है सही कहा
जवाब देंहटाएंJay ho devbhoomi ki
जवाब देंहटाएंShi bta kahi hai aap ne
जवाब देंहटाएंBhut bdiya
जवाब देंहटाएंShi likh hai bhai grate work bro
जवाब देंहटाएंGood work. .....👍👍👍👍
जवाब देंहटाएंकिसी को तो ध्यान आया कोई तो जगा......👍👍
जवाब देंहटाएंJal he jiwan hai
जवाब देंहटाएंGrate work bro
जवाब देंहटाएंGood work sugar baneshi
जवाब देंहटाएंGrateful article bro
जवाब देंहटाएंGood job
जवाब देंहटाएंShi likh hai
जवाब देंहटाएंNice bro bhai
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if you have any dougth let me know