बैजनाथ का इतिहास


इस बैजनाथ मंदिर परिसर 18 हिंदू मंदिरों का एक समूह है, जो भारत के उत्तराखंड के बैजनाथ शहर में स्थित हैं। परिसर समुद्र तल से 1, 12 5 मीटर ( 3, 691 फीट) की ऊंचाई पर गोमती नदी के किनारे बागेश्वर जिले में स्थित है। 

ये मंदिर संभवतः दुनिया के बहुत कम मंदिरों में से एक हैं जहाँ पार्वती को उनके पति शिव के साथ दिखाया गया है। तीर्थयात्री शिवरात्रि और मकर संक्रांति के अवसर पर यहां पहुंचते हैं।

यह गोमती नदी के बाएं किनारे पर स्थित 18 पत्थर के मंदिरों का समूह है। 102 पत्थर की प्रतिमाएँ हैं, जिनमें से कुछ पूजा के अधीन हैं, जबकि अन्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा आरक्षित हैं। बैजनाथ मंदिर परिसर में सिद्धांत देवता वैद्यनाथ (शिव) , पार्वती, नृत्य गणपति , कार्तिकेय, नरसिंह, ब्रह्मा, महिषासुरमर्दिनी, सप्त नर्तिका, सूर्य, गरुड़ और कुबेर हैं।


जब कत्युरी राजाओं ने अपनी राजधानी को जोशीमठ से कार्तिकेयपुर में स्थानांतरित कर दिया, तो बड़ी संख्या में लाकुलीशा, नाथ (कनफटा) जंगम, वैरागी, सन्यासी जैसे एस्टोरिक शैव संप्रदायों के अनुयायी भी उनके पीछे हो गए। उनके पुनर्वास के लिए, कत्यूरियों ने वैद्यनाथ शिव को समर्पित मंदिरों के एक बड़े परिसर का निर्माण किया, यह नाम बाद में बैजनाथ को भ्रष्ट हो गया। मंदिर परिसर में 1202 ईस्वी पूर्व के कई शिलालेख मिले हैं। राजा ज्ञानचंद के शासनकाल के दौरान मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण किया गया था। 1743-1744 ई. में रोहिलों द्वारा मंदिर परिसर को लूट लिया गया था, जिसके कारण मुख्य मंदिर के शिखर को नष्ट कर दिया गया था। बैजनाथ मंदिर परिसर बैजनाथ शहर के पूर्वी भाग में गोमती नदी के बाएं तट पर स्थित है। यह बागेश्वर जिले में बागेश्वर से 22 किमी और कौसानी से 16 किमी की दूरी पर स्थित रानी के आदेश से निर्मित पत्थरों की एक उड़ान द्वारा नदी के किनारे से देखा जाता है। परिसर में मुख्य मंदिर वैद्यनाथ शिव को एक लिंग के रूप में समर्पित है। ग्रे क्लोराइड विद्वन से बनी पार्वती का चित्रण कला का चमत्कार है। एक अन्य मूर्तिकला तत्व वैद्यनाथ मंदिर के बाहर विलासना में काल भैरव की एक आदमकद प्रतिमा है


इस स्थल को राजधानी बनाकर यहाँ क्रमशः तीन  राजवंशों ने शासन किया। सर्वप्रथम, कार्तिकेयपुर राजवंश' के अवसानकालीन राजाओं ने इसे “वैद्यनाथ-कार्तिकेयपुर" नाम देकर प्रायः 1050 ई० तक यहाँ से शासन किया। तदन्तर यह 'कातियुर राजवंश तथा-कथित कत्यूरी) की राजधानी रहा। वे प्रायः सोलहवीं शती ई० तक यहाँ के शासक रहे। लक्ष्मीनारायण मन्दिर के द्वार-पार्श्व का शाके 1214 ई. का लेख (जिसे एटकिन्सन ने शाके 1274 ई. का बताया) तथा भोगमन्दिर की हरगौरी मूर्ति का शाके १२८७ का लेख उसी काल के हैं। एटकिन्सन (ना०वे०प्रोगजे०, खण्ड 11, पृ० 516-20) ने यहाँ प्राप्त 1203, 1322 तथा 1466 ई० के लेखों का उल्लेख किया है। उसे त्रिपाठी परिवार में रजबार इन्द्रदेव का 1202 ई० का एक ताम्रपत्र भी मिला था। एक धारे पर दो लेख भी उसने देखे जिसमें उदयपालदेव, चरणपाल, आदि नामों को पढ़ा गया। यहाँ प्राप्त दो अन्य शिलालेख अब बैजनाथ-संग्रह में संरक्षित हैं। इन अभिलेखों से प्रकट होता है कि कातिपुर-राजवंश की एक शाखा दानपुर परगने में शासन करती थी। अन्तमें, रुद्रचन्द (1565)- 1567 ई०) ने कातिपुरों का उत्पाटन कर बैजनाथ पर 'चन्दराजवंश' का आधिपत्य स्थापित कर लिया। कोट-की-माई मन्दिर में चन्दों के तामपत्र सुरक्षित हैं।


इस पुरास्थल के मुख्य तीन भाग हैं : तैलीहाट, बैजनाथ तथा कोट। गोमती की बायीं ओर 'तैलीहाट' तथा 'शीलीहाट' नामक दो गाँव हैं। 'हाट' यहाँ राजधानी का द्योतक है। पुरानी राजधानी का 'तैलीहाट' गाँव ही 'रणचूलाहाट' कहलाता था। यहाँ के नीलाचौंरी नामक चबूतरे पर बैठकर कातिपुर राजा न्याय करते थे। इसके दक्षिण की ओर लक्ष्मीनारायण मन्दिर है जिसकी मूर्ति, स्थानीय लोगों के अनुसार, अब गणनाथ में स्थापित है। इसके द्वार-पार्श्व के लेख में वर्णित हम्मीरदेव को एटकिन्सन ने मणिकोटी राजा माना है। इस मन्दिर से नीचे राक्षसदेवाल, सत्यनारायण तथा मृत्युञ्जय नामक भग्न देवालय हैं।


कातिपुर राजाओं का प्रसिद्ध दुर्ग ‘रणचूलाकोट' एक पहाड़ी पर बैजनाथ से प्रायः डेढ़ मील के अन्तर पर है। दुर्ग में रणचूलादेवी का मन्दिर है जिसे कोट-की-माई भी कहते हैं और जिसे नन्दादेवी माना जाता है। दुर्ग के नीचे 'हाटखेत' में 'वैद्यनाथ' का मुख्य बाजार था।


बैजनाथ का मुख्य मन्दिर गोमती के वाम तट पर भग्नावस्था में है। मन्दिर के सामने गोमती-तट पर पक्का सोपानमार्ग बना है। प्रवेशद्वार पर पार्वती की भव्य मूर्ति विराजमान है और गर्भगृह में शिवलिङ्ग स्थापित है। पार्श्व में केदारमन्दिर तथा लक्ष्मी मन्दिर हैं।


एटकिन्सन तथा उसके अनुसरणकर्ताओं की यह धारणा कि बैजनाथ ही आदि कार्तिकेयपुर था, पूर्णतः भ्रामक है। आदि कार्तिकेयपुर तो जोशीमठ के दक्षिण में कहीं स्थित था। कार्तिकेयपुर-राजवंश के अवसानकालीन राजा जब पूर्व की ओर बैजनाथ में सङ्क्रमित हुए, तब उन्होंने अपनी इस नव राजधानी को “वैद्यनाथ-कार्तिकेयपुर" के नाम से पुकारा। यह नाम उनके बैजनाथ-शिलालेखों में अङ्कित है।


कहते हैं, कत्यूर-घाटी में छठी शती के आस-पास एक बौद्ध विहार था, और वैसा ही विहार इसके समीप गढ़वाल के बौधायनपर्वत (बौधाणगढ़) में भी था। असंदिग्ध रूप से, सातवीं-आठवीं शती तक यह क्षेत्र बौद्ध प्रभाव में था। एक बुद्धमूर्ति बैजनाथ-संग्रह में है, तथा दूसरी भग्न मूर्ति हाट गाँव में कातिपुर राजाओं के चौंतरे पर पड़ी है जिस पर सूत्रधार का नाम 'आनन्द उत्कीर्ण है। बौद्ध-विहार की स्थिति साम्प्रत अज्ञात है।

    
          
                      ........   जय ईस्ट गोरिया........ 



                                                          ◆   Sagar baneshi

8 टिप्पणियाँ

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  1. Well done 👍 keep doing your work ❤ and blessings are uh 😇

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  2. jai devbhoomi uttarakhand🙏proud to be uttarakhandi 😊😌

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  3. बढ़िया। खूब अच्छा, यह तो सिर्फ एक लहर है इतने बड़े समुद्र मै। ऐसे कई खूबसूरत और शक्तिशाली मंदिर हमारे देवभूमि और पूरे भारत में स्थापित हैं। जय हिन्द 🙏। हम जैसे नए पीढ़ी को हमारे इन शानदार इतिहासिक, पूर्वजों की दी हुई इन वरदानों को आगे लेकर जाना चाहिए। विदेश को ज्यादा और भारत को कम समजना ही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। असल में जितनी इतिहासिक तर्ररक्की भारत में है वेसी किसी भी और देश में नहीं।❤️

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