नैनीताल का इतिहास। History of Nainital in Hindi
नैनीताल 2000 मीटर की ऊंचाई पर बसा एक ऐसा हिल स्टेशन जिसकी खूबसूरती के चर्चा देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में होती है। दुनिया के अलग-अलग देशों से लोग झीलों के शहर को देखने पहुंचते हैं और इसकी सुंदरता के मुरीद हो जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही नैनीताल कई सालों एक रहस्य बन कर रहा एक ऐसा रहस्य जिसके बारे में स्थानीय लोग तो जानते थे लेकिन बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति की जानकारी नहीं थी कि बाहरी व्यक्ति खूबसूरत जगह कहीं करते थे कि पहाड़ों की गोद में बसी इसके बारे में किसी को खबर न लगे। यही कारण है कि? पौराणिक नैनीताल का जैक्सन पुराण और मानस खंड में विदेश था, लेकिन यह जगह 19 फ़ीसदी तक भी दुनिया से छुपी रहे, लेकिन एक अंग्रेज व्यापारी चालाकी से यहां पहुंचता है। नैनीताल की पूरी तस्वीर बदल देता है। समझ जाऊंगी कि नैनीताल शहर बनाने का जब पहली बार किसी ने सपना देखा था। नैनीताल के अस्तित्व का इतिहास बहुत पुराना है। कुरान में से 3 ऋषि सरोवर कहां गया? 3 प्लस और पलक मान्यता है कि तीन विशेष जगह पर तपस्या के लिए आए थे लेकिन यहां उन्हें जब पीने का पानी नहीं मिला तो वह अपने तक से तिब्बत के पवित्र मानसरोवर का पानी यहां ले आए का निर्माण व एक अन्य मान्यता के अनुसार नैनीताल 64 शक्तिपीठों में से एक है। यह वही शक्तिपीठ है जिनका निर्माण सदी के विभिन्न अंगों के गिरने से हुआ। भगवान से उनके जले हुए शव को ले जा रहे थे। मान्यता है किस जगह पर शादी की बाई आंख री थी, इसलिए इसका नाम नैनीताल पड़ा जो कालांतर में नैनीताल कहलाने लगा। इस साल के उत्तर पर नैना देवी का एक मंदिर है जहां सदियों से देवी शक्ति की पूजा होती है।
इस मंदिर के चलते नैनीताल को बेहद पवित्र माना जाता है। लेकिन मिलता है कि नैनीताल में सदियों से ही एक मेले का भी आयोजन होता रहा है। इसकी जानकारी पहले से स्थानीय लोगों को होती थी और कोई भी बाहरी व्यक्ति बाहर नहीं जाने दिया जाता था। आज से करीब 200 साल पहले नैनीताल में कोई भी निर्माण नहीं हुआ था जबकि के पास ही अल्मोड़ा शहर। पहले बस चुका था। नैनीताल में शहर बसाने का सपना देखा गया। साल 1839 में चुप्पी बैरन नाम का एक अंग्रेज व्यापारी यहां पहुंचा। हालांकि बैरन से पहले जॉर्ज विलियम टेल भी नैनीताल आ चुके थे। ट्रेल कुमाऊ के दूसरे कमिश्नर हुए नैनीताल पहुंचने वाले पहले यूरोपी लेकिन पहले अपनी नैनीताल यात्रा को ज्यादा प्रचारित नहीं किया था। स्थानीय लोगों की धार्मिक मान्यता का सम्मान करते थे। रिसीव नहीं चाहते थे कि ज्यादा लोगों को इस पवित्र जगह के बारे में जानकारी हो। विशेष तौर से अंग्रेजों को तो बिल्कुल भी नहीं लेकिन फिर आया साल 1839 नाम का एक व्यापारी और घुमक्कड़ अपने दोस्त कैप्टन टेलर के साथ नैनीताल पहुंच गया के जंगलों में शिकार करते हुए बैरन ने नैनीताल के बारे में थोड़ा बहुत जिक्र सुना था। लेकिन जब भी वह किसी से झील के बारे में और अधिक जानने की कोशिश करते तो उन्हें कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं मिलता था। इसके चलते बैरन के मन में नैनीताल पहुंचने की उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गए। अपने एक लेख में पी बैरन ने लिखा है। नैनीताल संबंधित किसी भी चीज के बारे में पूछने पर सभी पहाड़ी लोग रहस्य में चुप्पी साध लेते थे। अल्मोड़ा लौटकर मैंने इस बाबत और जानकारी हासिल करने का प्रयास किया लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी। हालांकि अब तक बैरन इतना तो जान ही चुके थे कि नैनीताल नाम की कोई खूबसूरत जगह आसपास ही होगी। वो किसी भी हाल में इस जगह तक पहुंचना चाहते थे। स्थानीय लोग हर हाल में उन्हें यहां पहुंचने से रोकने की कोशिश कर रहे थे। ऐसे में पी बैरन और उनके दोस्त एक चाल चली नाम से लिखने वाले P1 अपने संस्कृत पिलग्रिम वांडरिंग में हिमालय में लिखते हैं।
हम हिमालय में झील की मौजूदगी के बारे में हमें बेवकूफ बनाना आसान नहीं था और फिर पहाड़ों से उतर रही जल धाराएं भी हमारा निर्देशन कर रही थी। गाइड जहां तक संभव था, हमें गलत दिशा की ओर ले गया। जब हमें यह आभास हो गया कि वह धोखा दे रहा है तो हमने एक चाल चली उसके सिर पर एक भारी पत्थर रख दिया और कहा कि मंजिल पर पहुंचने के बाद ही सुधार आ जाएगा। उसके पास मंजिल तक जाने के अलावा और। पहाड़ी लोग आम तौर पर बड़े सीधे होते हैं और आप बड़ी आसानी से उन्हें बेवकूफ बना सकते हैं। यदि आप ऐसे गाइड के साथ नैनीताल जा रहे हैं जो रास्ता नहीं जानने का बहाना बना रहा है। तू ही तरीका है। एक पत्थर उसके सर पर रख कर कहिए कि से नैनीताल तक पहुंचाना है क्योंकि वहां पत्थर नहीं है। यह भी बताएं कि पत्थर गिरे या टूटे नहीं पर आपको इस पत्थर की नैनीताल में बहुत जरूरत है। भारी बोझ होने की चिंता में ही वह जरूर क्या बैठेगा कि साहब वहां पत्थरों की क्या कमी है और यह बात भला नैनीताल देखे बिना कोई कैसे कह सकता है। हमने भी करीब 1 मील चलने के बाद उस भले मानुष के सर्च हटा दिया क्योंकि उसे रास्ता याद आ चुका था। इसी के चलते नैनीताल पहुंचे तो अपनी आंखों के आगे का नजारा देखते हैं। कितनी खूबसूरत जगह आज तक अछूती कैसे रह गए। नैनीताल की खूबसूरती को दर्ज करते हुए लिखा पर लगभग पर्वत श्रंखला पर स्थित है। यह जगह मिल की दूरी और समुद्र तल से 6200 फीट की ऊंचाई पर है। मैंने थर्मामीटर को उबलते पानी में डालकर कई परीक्षण लिए और यहां पानी का उबाल बिंदु 202 डिग्री फारेनहाइट आयल हल किए हुए हैं और लंबाई में लगभग सवा से डेट में तथा चौड़ाई में अधिकतम तीन चौथाई नील होगी। झील का पानी क्रिस्टल की तरह साफ है। एक सुंदर जलधारा पहाड़ की ऊंचाइयों से आकर्षित और वैसी ही छोटी धारा दूसरी ओर से बाहर निकल जाती है। खील काफी गहरी मालूम पड़ती है। इसके चारों ओर पहाड़ों की ढलान ए डूबती चली गई है। इस विशाल एंफीथियेटर के दूसरे छोर। लंबा खूबसूरत और लगभग समतल ढलान फैला हुआ है जो एक आकाश को चूंकि पहाड़ी के चरणों में समाप्त होता है। कहीं-कहीं इसलंबा खूबसूरत और लगभग समतल ढलान फैला हुआ है जो एक आकाश को चूंकि पहाड़ी के चरणों में समाप्त होता है। कहीं-कहीं इसमें बांध साइप्रस और दूसरी जातियों की झील के दोनों ओर के किनारे भी विशाल पहाड़ियों और चोटियों से घिरे हैं, जिनमें बिखरे हुए घने वन झील की सतह को चुनते हुए निकल जाते हैं। एक और की पहाड़ी में आपको तीर की तरह हुए दिखाई देते हैं जिनमें कई तो डेढ़ सौ फीट तक धरती की ओर इस तरह झुकी हुई है कि वृक्ष शंकु का आकार ले लेते हैं। पहली बार हो रहा था जब नैनीताल को कोई व्यक्ति पर ज्ञानिक नजरिए से देख रहा था। एक शहर बताए जाने की संभावनाएं तलाश रहा था। इस बारे में मैंने लिखा है। लकड़ी की शुद्ध पानी, खुला, मैदान और बड़ी संख्या में भवनों के निर्माण के लिए आवश्यक सुविधाएं यहां मौजूद थे। घुड़सवारी और गाड़ी के मतलब की मीलों लंबी सड़क बनाने की गुंजाइश भी है जिसकी हिमालय में कहीं भी जरूर। पानी की आंख जबरदस्त उपस्थिति है जो खूबसूरती और जरूरत दोनों के लिहाज से सबसे ऊंची पहाड़ी और झील के बीच के ढलान मैदान में किसी रेसकोर्स या क्रिकेट का मैदान बनाने की और थर्ड दिशा में मकान बनाकर छोटा-मोटा शहर बसा लेने की भरपूर गुंजाइश झील की परिधि में चारों ओर घुड़सवारी या गाड़ी चलाने लायक सुंदर सड़कें भी आसानी से बनाई जा सकती। इसके पानी में हजारों मौका ही लगातार विहार कर सकती हैं, जिनकी दक्षिणी चोटियों से दिखाई पड़ने वाले मैदानों से मुश्किल से 1 दिन के सफर में यहां पहुंचा जा सकता है। बिल्कुल वैसे मसूरी से धूम पहली नैनीताल यात्रा से जप्पी बैरन वापस लौटे तो एक ऐसा सपना लेकर लौटे जिसने उन्हें बेचैन कर दिया। सपना था नैनीताल में मुकम्मल शहर बसाने का इसी सपने को पूरा करने बैरन कुछ समय बाद दोबारा नैनीताल आए और इस बार वह पूरी तैयारी के साथ आए थे उन्होंने काठगोदाम से एक लकड़ी की नाव 60 मजदूरों के साथ पहले ही रवाना कर दी थी। इस यात्रा में बहन के साथ असिस्टेंट कमिश्नर जी एच बैटरी क्षेत्र के ठोक दा। नरसिंह बोरा भी आए थे। तमाम स्थानीय लोगों की तरफ होता नर सिंह बोरा भी नैनीताल को पवित्र मानते थे। नहीं चाहते थे कि ज्यादा पर कोई भी निर्माण करें। एक और चाल चली इतिहासकार बद्री दत्त पांडे अपनी चर्चित किताब कुमाऊ का इतिहास में लिखते हैं।
दिल के बीचो-बीच ले गए। फिर अपनी जेब से एक नोटबुक निकालते हुए उन्होंने दर्शन से कहा कि वह इस पर दस्तखत करते हुए मान ले कि नैनीताल पर उनका कोई हक नहीं है अन्यथा उन्हें डुबो दिया जाएगा। डर के मारे नरसिंह ने दस्तखत कर दिए तोबा नरसिंह को इस तरह डरा कर उनसे नैनीताल के अधिकार लेने की बात। बीबर ने भी अपनी किताब में लिखी है। इस तरह नैनीताल की झील में पहली बार उतरी। एक नाव पर इस जगह का भविष्य लिखा गया। नैनीताल में शहर बसाने का सिलसिला भी यहीं से शुरू हुआ और सबसे पहले यही पी बैरन का एक यूरोपियन हाउस का नाम पर रखा गया। नरसिंह को पांचवे महीने के वेतन पर नैनीताल का पहला पटवारी बनाया गया। मैंने यहां कुल 12 कॉटेज बनवाए। उनके कमिश्नर है जॉर्ज थॉमस लशिंगटन। अभी यहां कोठी बनवा 1845 तक नैनीताल की 536 एकड़ जमीन अंग्रेजों ने ले ली थी। में सबसे पहले लाल मोतीराम शाह ने यहां कुटिया बनवाई। 47 आते-आते नैनीताल एक चर्चित पर्यटक स्थल बन चुका था।
15 अक्टूबर 28 को नैनीताल नगर निगम का औपचारिक रूप से गठन हुआ उत्तर पश्चिमी प्रांत का जूता नगर बोर्ड था कि शहर के निर्माण को तेजी देने के लिए प्रशासन ने अल्मोड़ा के धनी सहा समुदाय को जमीन सौंप दी थी। इसके साथ कि वह इस जमीन पर घरों का निर्माण करेंगे। 18 सो 62 में नैनीताल उत्तरी पश्चिमी प्रांत की समय कैपिटल बना और तभी शहर में शानदार बंगले, रेस्ट हाउस क्लब और कम्युनिटी सेंटर जैसी सुविधाएं तेजी से बढ़ी नैनीताल शिक्षा का भी एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था। देश के आजादी के बाद उत्तर प्रदेश के गवर्नर का ग्रीष्मकालीन निवासी नैनीताल में ही हुआ करता था और आज उत्तराखंड का एक राज भवन भी यहीं स्थित है। हालांकि बीपी दो शादियों में नैनीताल निर्माण के बोध से इतना लग गया है कि अब इस शहर पर भी भारी खतरा मंडराने लगा है। नैनीताल शहर के बस्ती की कहानी आपको कैसी लगी।
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