सोलवीं सदी की बात है। बॉडी के बरेली गांव में बारात आने वाली थी। पूरा गांव बारातियों के स्वागत की तैयारी में जुटा था। खाना पकाने की व्यवस्था जहां की गई थी, वहां से पानी का धारा कुछ नहीं धारे से पानी का एक बड़ा बड़ा। बर्तन ऊपर पहुंचाना था, लेकिन इतना बड़ा और भारी था कि गांव के कई लोग मिलकर भी से नहीं उठा पा रहे थे। तभी एक 14 साल का बच्चा वहां पहुंचा और उसने अकेले ही पानी से भरा एक थैला उठाकर एक ही सांस में ऊपर वहां तक पहुंचाया। जहां खाना बन रहा था। इस बच्चे की विलक्षण क्षमता को देखकर पूरा गांव अवाक रह गया। गांव वालों ने इस बच्चे को अपने कंधों पर उठा लिया और उसकी जय-जयकार करने लगे। लोग समझ चुके थे कि बड़ों के देश में एक और भाई ने जन्म ले लिया है। इस फल का नाम था खोला जी नमस्कार, मैं हूं सागर बणेशी और आप देखें रहे है । देव भूमि उत्तराखण्ड का विशेष कार्यक्रम इतिहास।
देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे योद्धाओं ने जन्म लिया है। चीन की वीरता के किस्से यहां के लोकगीतों से लेकर इतिहास की किताबों तक दर्ज है। ऐसे एक योद्धा थे। राजा महि पर छाया के सेनानायक रिकोला युद्ध कौशल और बहादुरी के किस्से नसीब गढ़वाल बल्कि दिल्ली दरबार तक प्रचलित थे। उनकी वीरता का ही असर था कि सेनानायक रहते हुए उन्होंने राज्यों में परीक्षा के साम्राज्य में बड़ा हिस्सा शामिल कर लिया था। इसके साथ ही सिलाई फते पर्वत से हाटकोटी रोहडू तक जौनसार बावर तक कुमाऊ के द्वाराहाट तक और सुदूर तिब्बत के बाबा घाट। उन्होंने राजा महिपाल शाह का शासन स्थापित किया। गढ़वाल के बरेली गांव में जन्मे लो धीरे खोला के पिता इलाके के एक प्रतिष्ठित योगदान हुआ करते थे। जब कम उम्र में ही एक विख्यात होने लगे। उनके पिता ने संभ्रांत योगदान परिवार की बेटी से रिकोला की शादी करवा दी। इतिहास का दर्शन लिखते हैं कि उन दिनों लो धीरे खोला अधिकतर अपने गांव से कुछ मील पश्चिम की। दिशा में नया नदी के किनारे खैरा सेंड में अपने बगीचे में रहा करते थे, लेकिन जल्द ही उनके एकांतवास का विक्रम भंग हो गया। दरअसल, उस दौर में गढ़वाल रियासत बार-बार होने वाले तिब्बती आक्रमण से परेशान थी। प्रदर्शन अपनी किताब में लिखते हैं। तिब्बती सरदार अक्सर गढ़वाल में आकर लूटपाट किया करते थे। ऐसे में महाराज दीपक शाह ने उन्हें हमेशा के लिए प्राप्त करने का निश्चय किया। मुख्य सेनापति माधव सिंह भंडारी के सुझाव पर उन्होंने गढ़वाल भर के बढ़ो और अन्य वीर युवाओं को निमंत्रण दिया। लो धीरे खोला भला उस निमंत्रण को कैसे अस्वीकार कर सकते थे? कुशीनगर जाकर दरबार में प्रस्तुत हो गए और एक सेना के संचालक नियुक्त हुए युद्ध में लो देवी खोला नहीं आते। स्ट पीटर का परिचय दिया इसलिए वहां से लौटने पर वे दक्षिणी सीमा की रक्षा का भार दिया कि स्वयं दक्षिणी गढ़वाल के निवासी थे। लो धीरे से जुड़े जुड़े गढ़वाल में गाए जाते हैं। आता है कि खोला दिल्ली के राज दरबार से दरवाजा उखाड़ लाए थे, लेकिन दर्शन इस बारे में लिखते हैं। किस पर विश्वास करने के लिए मजबूत ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है। उनके अनुसार रखो लाने संभव ही नजीबाबाद के किले पर आक्रमण किया होगा और अपने बल पर के पाठक को नष्ट भ्रष्ट करके उसका कुछ अंश प्रमाण के तौर पर श्रीनगर दरबार में लाए होंगे। इस घटना के बारे में विख्यात साहित्यकार और हिंदी में डी लिट की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय डॉक्टर पीतांबर दत्त बार्थवाल कभी बिल्कुल यही मत है। उनके अनुसार क्योंकि दक्षिणी सीमा की रक्षा का भार खोला के कंधों पर था। ऐसे में नजीमाबाद के किले पर उनका आक्रमण करना ज्यादा तर्कसंगत। क्योंकि उन दिनों डाकू लुटेरे गढ़वाल की सीमा में घुसकर लूटपाट करते थे और भागकर नजीबाबाद की शरण में घुस जाया करते थे। संभव है कि उन्हीं का दमन करने के लिए लो धीरे खोला को उसके लिए पर हमला करना पड़ा हो। दक्षिणी लुटेरों का दमन करने के लिए लो तेरे को लाने जिस स्थान पर अपनी रक्षण सेना नियुक्त की थी, उसी अमरीश निकाल कहते हैं। उस दौर में जहां एक तरफ लूटेरे खोला दक्षिणी सीमा की सुरक्षा कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ पश्चिमी सीमा की सुरक्षा माधो सिंह भंडारी के हवाले थी। जब तक जीवित रहे तब तक सिरमौर आदि राज्यों में पूर्ण शांति रहे और उधर के सभी लोग गढ़वाल के संरक्षण में रहना स्वीकारते रहे। उनकी मौत के बाद इस सीमा पर फिर से उपद्रव होने लगा तो बर्बाद कर देते और गांव में लूटपाट वापस चले जाते। उनका दमन करने के लिए राजा ने कई बार से नहीं भेजी। इसे कुछ दिन तो शांति रहती, लेकिन सेनाओं के लौटने पर फिर से उत्पाद शुरू हो जाता। ऐसे में महाराज में दीपक शाह को। एक बार फिर से लो धीरे खोला की याद आए और उन्हें संदेशा भेजा गया। क्यों पश्चिमी सीमा को ठीक करें। महाराज का संदेश मिलते ही लो देखो लाने अपने परिवार वालों से विदा ली और वह पश्चिमी सीमा की तरफ बढ़ने लगे। तभी उनके बाएं भुजा कुछ इस तरह से फड़कने लगी कि उन्हें अपशगुन का एहसास होने लगा। उन्हें आभास हुआ कि शायद जीवित नहीं लौट सकेंगे और उनके पैर थिएटर कटहल और लोहे के बच्चे लगे थे और इस द डे के ऊपर नकली जमीन तैयार कर दी गई थी। प्रदर्शन वाले दिन जैसे ही रखो। लाल लोधी ने उस विशाल दरवाजे को झटका देकर अखाड़ा को पीटने के गड्ढे में जा गिरा। इससे बुरी तरह जख्मी हो गए। एक वर्णन के अनुसार लो धीरे खोला था। वही देहांत हो गया और सिर्फ उनकी पगड़ी तक पहुंच सके।
अरुण के पैकेट आकर ठहर गए। उनका आगे बढ़ने का सहा जाता रहा। लिहाजा वह गांव से कुछ ही दूरी पर बसे वाट की पगड़ी में रात बिताने के बाद अगली सुबह घर वापस लौट आए से लौटते हुए देखा। बहुत नाराज हूं। उन्होंने याद दिलाया कि देश की रक्षा के लिए चाहे प्राण भी क्यों न देनी पड़े। लेकिन वीरों को पीछे नहीं हटना चाहिए। उन्होंने कहा, मेरे दूध की लाज रखना और अपने को कॉल लगाना मां से मिले। प्रोत्साहन के बाद लो देखो लक्ष्मी नगर पहुंचे। जहां महाराज ने स्वयं अपने हाथों से उनका तिलक किया और अपना आशीर्वाद देते हुए सेना के संचालन का भार देकर उन्हें पश्चिमी सीमा की तरफ रवाना किया। अपनी वितरण कुशलता और सैन्य संचालन सेलो तेरे को लाने सिरमोरी लुटेरों के दांत खट्टे कर दिए। उन्होंने लुटेरों को गढ़वाल की सीमा से बाहर तो खदेड़ा ही साथ सिरमौर की सीमा में घुसकर उनका पूरी तरह दमन भी किया। प्रदर्शन लिखते हैं कि तब उस पूरे क्षेत्र में त्राहि-त्राहि मच गई थी। व्हाट्सएप नहीं खोला को आश्वासन दिया था कि वह आज के बाद कभी भी गढ़वाल की सिमर्लांग में की गलती नहीं करेंगे। यहां तक कहा जाता है कि उस दौर में रखो लाल लोधी के नाम से ही पूरे इलाके के लोग आतंकित होते थे। पश्चिमी सीमा पर सफलता पाकर जब रे खोला, श्रीनगर लौटे तो वहां उनका शानदार स्वागत किया गया। महाराष्ट्र स्वयं अपने हाथों से निखिल पहनाई और आज्ञा दी कि कराईकाल से दक्षिण का सारा इलाका जागीर में इन्हें दे दिया जाए। दर्शन लिखते हैं। असाधारण सम्मान से मंत्रियों में खलबली मच गई और उन्होंने के खिलाफ शुरू कर दिए। उन्होंने महाराज को महकाया किलो धीरे खोला। स्वयं राजा बनना चाहते हैं। उन्हीं मंत्रियों ने फिर भी खोला की हत्या तक करने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने एक चाल चली भोला लोधी को बल प्रदर्शन करने की चुनौती दी गई। लोहे के बच्चे लगे थे और इस द डे के ऊपर नकली जमीन तैयार कर दी गई थी। प्रदर्शन वाले दिन जैसे ही रखो। लाल लोधी ने उस विशाल दरवाजे को झटका देकर अखाड़ा को पीटने के गड्ढे में जा गिरा। इससे बुरी तरह जख्मी हो गए। एक वर्णन के अनुसार लो धीरे खोला था। वही देहांत हो गया और सिर्फ उनकी पगड़ी तक पहुंच सके। उनके साथ सती हो गई, लेकिन वर्णन के अनुसार उन वर्षों से घायल हो जाने पर बिल खोला। साहस पूर्वक उठ खड़े हुए और अपने गांव की तरफ चल दिए। यहां खैरा सेन के पास बैठकर डी नदी के किनारे पहुंचने के बाद जब चढ़ाई शुरू हुई तो वह आगे नहीं बढ़ पाए और वही उनके प्राण निकल गए। इन दोनों कथाओं से इतर एक तथा यह भी है कि लो तेरे को लाने अपनी पगड़ी से अपनी कमर के गांव कसकर बांध घोड़े पर सवार होकर अपने गांव पहुंचे। जहां पर उन्होंने अपनी मां की गोद में अंतिम सांस ली। दर्शन लिखते हैं कि रिकोला लोधी के इस? नासिक षड्यंत्र का शिकार हो जाने पर महाराज दीपक शाह को गहरी आत्मग्लानि हुई। उन्हें अफसोस हुआ केक निश्चल वीर देश प्रेमी दरबारियों के षड्यंत्र से मारा गया कहा जाता है। किसी के पश्चात आपके लिए उन्होंने राजद कमल चंद से बेवजह एक आत्मघाती युद्ध छेड़ दिया, जिसमें उनकी मौत हो गई। आज बदलपुर पट्टी के बरेली और कोटा गांव में रहते हैं। दिल्ली में रख ओला का एक स्मारक के बारे में एक कहावत है कि एक बार किसी ने भी खोला को ताना मारा था कि अगर सच में भाड़ हो तो पत्थर उठा लाओ। विशाल पत्थर गांव से कुछ दूरी पर पड़ा हुआ था। ताला खोला था कि वह तुरंत उस पत्थर को उठा लाए गांव के बीच में स्थापित कर दिया था। बताते हैं कि पत्थर आज भी मौजूद है। टूट गया है लेकिन अभी भी जो टुकड़ा बचा है वह लगभग 6 फीट लंबा 4 फीट चौड़ा 1 फुट ऊंचा है और आज भी लोग धीरे खोला की भी दाता की गवाही देता है। आज के कार्यक्रम आपको कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं। अगर आपको यह कार्यक्रम पसंद आया तो इसे शेयर करने के साथ ही देव भूमि उत्तराखण्ड को सपोर्ट करें। ताकि हम लाते रहे पहाड़ों से जुड़ी ऐसी ही जानकारी 12।
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