यह संसार आवागमन का चक्र है ।कितने ही प्राणी आते और जाते है। कौन किसको जनता है.? काल चक्र मे सब समाते चले जाते हैं । कुछ तपः पूत, मनस्वी , यशस्वी , ब्रह्मवर्चस्वी महापुरुष ने कभी- कभी धराधाम पर आते हैं। अपनी असामान्य कृति से नूतन की इतिहास का निर्माण करते हैं , पृथ्वी को पुण्यमयी बनाते हैं, क्षेत्र को पवित्र करते हैं । उनकी प्रेरक उपस्थिति से पुरुषार्थप्रिय , स्वाभिमान से मा परिपूर्ण हो जाते हैं। नैसर्गिक सौन्दर्य से भरपूर इस क्षेत्र में भी संत आत्माओं, समाज प्रब सेवियों व माँ शारदा के वरद पुत्रों ने समय समय पर क्षेत्र व समाज वर का मार्गदर्शन किया है। इसी सन्दर्भ में रा० इ० का0 बग्वालीपोखर पाँ का भी अपना प्रेरणादायक इतिहास रहा है। माँ शारदा के इस पावन शा मन्दिर को सँवारने में जन-जन की इच्छा शक्ति, लोकोपकारियों , क्षेत्र में की सभी ग्राम सभाओं, नौजवानों, विद्यालय की तत्कालीन प्रबन्ध के कारिणी समिति, इतर क्षेत्र हित से सम्बन्धित महानुभावों, सैन्य बलों व प्रशासन का अप्रतिम सहयोग रहा है। संतो का आर्शीवाद में फलीभूत हुआ है। जनप्रतिनिधियों का मार्गदर्शन व विद्यालय निर्माण में गा उत्साहवर्धक सहयोग रहा। इन सभी के अवर्णनीय सहयोग से विद्यालय छा शैशवास्था से क्रमशः प्रगति-पथ पर अग्रसर होता रहा।
जन सहयोग से सन् 1939 में जू0 हा0 स्कूल का के श्रीगणेश हुआ । 1945 में जिला परिषद को सौंपा गया । 1963 में वित्त सहित जिला परिषद से विद्यालय प्रबंधकारिणी समिति को हस्तान्तरित हुआ। कर्मचारियों की नियुक्ति प्रबन्धक समिति ने की। 2 जुलाई 1962 में क्षेत्रीय जनता द्वारा हाई स्कूल की स्थापना प्राइवेट रूप से की गई। 1966 में शासन से हाई स्कूल की मान्यता प्राप्त हुई। 1971 में विद्यालय वित्त सहित मान्यता प्राप्त हो गया। 1972 में हाई स्कूल को विज्ञान वर्ग से कक्ष संचालन की अनुमति शासन से प्राप्त हुई। जन सहयोग से प्रबन्धक समिति ने 1969 से इण्टर कक्षाओं का सचालन वयक्तिगत रूप से किया। इसी मध्यावधि में 1969 से 1971 तक पाँच दिवसीय रामलीला का आयोजन भी किया गया। इसी मध्य मातृ शक्ति द्वारा इण्टर कक्षाओं को खोलने के लिए आभूषण व जमीन दान में दी गयी। क्षेत्रीय जनता ने भी इण्टर कक्षाओं को संचालित करने के लिए यथाशक्ति धनराशि भेंट की। सभी के उत्साहवर्धक योगदान से 1973 में शासन से साहित्यिक वर्ग में मान्यता मिली तथा 1980 में शासन के अनुग्रह से इण्टर विज्ञान की मान्यता प्राप्त हुई , जिसमें में गणित व जीव विज्ञान विषय भी सम्मिलित थे। विद्यालय में छात्र व छात्राओं की संख्या 950 थी। सरकारी मानक के अनुसार विद्यालय प्रबन्धक समिति द्वारा सभी प्रवक्ता, अध्यापक व अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति की गयी । विद्यालय परीक्षाफल भी 80 से 90 प्रतिशत तक रहता था ।जनभावनाओं का सम्मान करते हुए जन सहयोग से ही 1991 में प्रबन्ध कारिणी समिति के अथक प्रयास से विद्यालय का प्रान्तीयकरण हुआ। प्रान्तीयकरण से पूर्व विद्यालय में कक्षा कक्षों व छात्र-छात्राओं के अध्ययन के लिए फर्नीचर की सुविधा उपलब्ध थी। विद्यालय में विज्ञान वर्ग के लिए जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान की अलग-अलग लैब थीं। साहित्य का प्रचुर भण्डार भी विद्यालय में उपलब्ध रहा । पुस्तकालय अध्ययन के लिए सुलभ रहता रहा है ।वर्तमान में विद्यालय के पास 80 नाली भूमि उपलब्ध है। विद्यालय को यह भूमि जन भावनाओं की उदारता से ही उपलब्ध हुई है। इसी भूमि में माँ भारती के पावन मन्दिर के निर्माण के लिए क्षेत्र के निकटवर्ती ग्राम-सभाओं द्वारा वन पंचायत कोष से धनराशि दिलायी गयी। ये सभी साधुवाद के पात्र है। विद्यालय के क्रमिक विकास में छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। जहाँ छात्र वर्ग विद्यालय के भवन निर्माण के लिए गार्गी गंगा से प्रचुर मात्रा में साधन उपलब्ध कराते थे वहीं दूसरी ओर मजखाली, गगास और कफड़ा से विद्यालय के लिए फर्नीचर भी लाते थे। सभी अध्यापक, कर्मचारी, छात्र, प्रधानाचार्य महोदय के संरक्षण में गगास जाकर जनप्रतिनिधियों, उच्च अधिकारियों के भव्य स्वागत हेतु सुबह से सायं तक प्रतीक्षारत रहते थे। रणसिंघ व अन्य बाजों की ध्वनियाँ हृदय में उत्साह की तरंगें पैदा कर देती थीं
स्मृतियों के संसार में विद्यालय में अवस्थित 'बोर्डिंग हाउस' को भी नहीं भुलाया जा सकता है। जहाँ छात्र प्रधानाचार्य एवं अध्यापकों के सहयोग से रात्रिकालीन अध्ययन का लाभ लेते थे। अध्यापकों व छात्रों का यह मधुर मिलन व स्नेह गुरुकुलों का स्मरण कराता है
वर्तमान की बात करें तो मां शारदा का यह पावन मंदिर आदर्श राजकीय इंटर कॉलेज यानी Model School के रूप पूरे क्षेत्र में गौरवान्वित हो चुका है इस विद्यालय की भौगोलिक रूप देखें तो यह विद्यालय बग्वालीपोखर बाजार से मात्र ½ km की दूरी मैं यह विद्यालय है। जो रावल सेरा ग्राम पंचायत में आता है। भूमि देव (लख राज जी) की कृपा से सरस्वती का यह पावन मंदिर अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर है।
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