शुङ्गकाल
(प्रायः १८७-७५ ई०पू०)
सम्राट अशोक की मृत्यूपरान्त, मागध साम्राज्य का पतन प्रारम्भ हुआ। मौर्य । साम्राज्य का मध्यवर्तीभाग ही पुष्यमित्र शुङ्ग के अधीन रह गया। अर्थात् शुङ्गों का अधिकार अब मात्र मगध तथा मध्य भारत तक सीमित था। इस काल में भी मध्य हिमालय का कुणिन्द जनपद पूर्णतः स्वतन्त्र रहा होगा। शुङ्गों के शिथिल शासनकाल में कुणिन्दभूमि और उसके पड़ोसी पर्वतों पर उनके अधिकार की भी कोई सम्भावना नहीं है। देहरादून जनपद के अम्बाड़ी ग्राम से 'भद्रमित्र' की जो मृणमुद्रा प्राप्त हुई है, उसकी लिपि शुङ्गकालीन बतायी गयी है। इस आधार पर श्री जयचन्द्र विद्यालङ्कार ने यह सम्भावना व्यक्त की थी कि द्रोणी-घाटी में भद्रमित्र शुङ्गों का कोई राजकर्मचारी रहा होगा। परन्तु ऐसा सुस्पष्ट नहीं है। हमारे मत से, उसके कुणिन्द कर्मचारी होने की अधिक सम्भावना है। -
इसी प्रकार, कुमाऊँ हिमालय की तराई में प्राप्त 'सेनापानी स्तूप' के भग्नावशेष, जिनका विधिवत् अध्ययन अभी नहीं हुआ, शुङ्गकालीन अनुमानित किये जाते हैं। वस्तुतः हिमालय-पाद के ये गहन वनप्रदेश भी अब शुङ्गों केअधिकार में नहीं थे। भारहुत स्तूप-वेदिका तथा साञ्ची के अत्यन्त सज्जित द्वार-तोरणों का निर्माण शुङ्गकाल में ही हुआ था, परन्तु मध्य हिमालय में उनके शिल्पियों के हाथ की कला खोजना व्यर्थ ही होगा। इन स्तूपों पर शुङ्गकालीन कला का प्रभाव अवश्य अनुमानित किया जा सकता है। अतएव मध्य हिमालय के पाद-प्रदेश में भी कभी शुङ्ग शासन रहा हो, यह कल्पनातीत है।
हिन्द-यूनानी यवन आक्रमण
शुङ्गकाल की प्रमुख घटना पश्चिमोत्तर से भारत (बैक्ट्रियन-ग्रीक) यवनों का आक्रमण है। पुष्यमित्र शुङ्ग के शासनकाल (प्रायः १८७-१५१ ई०पू०) में जिस 'यवन-आक्रमण' का उल्लेख उसके राजपुरोहित पतञ्जलि ने अपने महाभाष्य में किया है, उस आक्रान्ता की एकता में रैप्सन, स्मिथ, आदि विद्वानों ने मिनाण्डर से की है और कुछ अन्य ने डिमिट्रियस से। रैप्सन के अनुसार, "यह सम्भाव्य लगता है कि अपोलोडोटस् और मिनाण्डर, डिमिट्रियस भी, युथिडेमस राजकुल के, तथा तीनों समकालीन थे। " १० टार्न के अनुसार, इस यवन आक्रमण का नेता डिमिट्रियस ही था, परन्तु वह अपने साथ अपने भ्राता अपोलोडोटस् तथा सेनापति मेनाण्डर को भी लाया था।" मालविकाग्निमित्रम् से भी मगधराज पुष्यमित्र के पौत्र वसुमित्र का यवनों से संघर्ष होने तथा उन पर विजय-प्राप्ति का ज्ञान होता है। इन बाख्नी-ग्रीक राजाओं में मिनाण्डर (मिलिन्द वा मिलिन्द्र) सबसे महत्त्वपूर्ण राजा हुआ, जिसका शासनकाल अवधकिशोर नारायण ने प्रायः १५५-१३० ई०पू० अनुमानित किया। परन्तु डॉ० सरकार के अनुसार, उसने इसके उपरान्त ही शासन किया, सम्भवतः प्रायः ११५-६० ई०पू०। २ उसकी मुद्राएँ पूर्व में काबुल एवं सिन्धु की घाटियों से उत्तर प्रदेश के पश्चिमी जनपदों तक मिली हैं। बौद्ध ग्रन्थ मिलिन्द-पञ्हो के अनुसार, मिलिन्द अलसन्दा (काबुल-घाटी में अलेक्जैण्ड्रिया) के कलसीग्राम में पैदा हुआ था तथा उसकी राजधानी सागल (शाकल) थी।
१४ मिनाण्डर की राज्य-सीमा "हिफैनिस (= ब्यास) को पारकर पूर्व में ईसमस (Isamus) नदी १३ तक विस्तृत होने सम्बन्धी स्त्राबो (११.११.१) तथा ताल्मी के उल्लेखों के आधार पर मध्य हिमालय में फैली कुणिन्दभूमि पर हिन्द-यूनानी अधिकार की कल्पना की गयी है। परन्तु इसकी पुष्टि अभी नहीं हो सकी है। स्टेन कोनौ (Acta Orientalia, 1, p. 35) के अनुसार भी, न तो मिनाण्डर ने यमुना पार की थी, और न डिमिट्रिओस ने साकेत तथा मध्यमिका ने पर अधिकार किया था।
इन हिन्द-यूनानी राजाओं के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान मात्र उनके सिक्कों पर आधारित है। मुद्राओं की प्राप्ति ५ से पश्चिम में काँगड़ा-शिमला तक तो निश्चिततः अपोलोडोटस् (वेबर के अनुसार भागदत्त) एवं मिनाण्डर के अधिकार का ज्ञान होता है, परन्तु इसके पूर्व में नहीं। अतएव ज्ञान की वर्तमान अवस्था में, जबकि गढ़वाल-कुमाऊँ हिमालय में उनकी कोई मुद्रा प्राप्त नहीं हुई, उक्त यूनानी लेखकों के विवरण अधिक विश्वसनीय नहीं हैं। अधिकाधिक मध्य हिमालय के पश्चिमी छोर, रावी नदी के प्रदेश तक, मिनाण्डर का अधिकार हो सकता है।
प्रतीत होता है कि हिन्द-यूनानियों की शक्ति को कुचलने में पञ्जाब तथा उसके पूर्वी पड़ोसी आयुधजीवी जातियों का प्रमुख भाग रहा है। स्लीत होता है।
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