हरेला। उत्तराखंड का प्रमुख त्योहार

हरेला

हरेला उत्तराखंड में बनाए जाने वाला एक ऐसा खास त्योहार (पर्व) जिसका कुछ अलग ही महत्व है। अगर हम हरेला का अर्थ जाने तो हरेला यानी हरियाली वाला दिन और हरेली का एक तथ्य भगवान शिवजी से भी जुड़ा है। हरेला त्योहार जब भी आता है यह एक सूचक के रूप में आता है यानी हरेला त्यौहार हमें मौसम के बारे में बताता है यह त्योहार साल में तीन बार आता है और तीनों बार अलग-अलग महत्व लेकर आता है



1. चैत्र मास का हरेला
2. आश्विन मास हरेला
3. श्रावण मास का हरेला


चैत्र मास का हरेला


यह हरेला साल का सबसे पहला त्योहार होता है। और इसे चैत्र माह के पहले दिन बोया जाता है और 9 यानि ( नवमी)दिन काटा जाता है और यह भी माना जाता है कि यह चैत्र का हरेला गर्मी के मौसम का प्रतीक माना जाता है



आश्विन मास हरेला


यह हरेला साल का सबसे आखरी त्यौहार होता है जोकि आश्विन मास के नवरात्रों के पहले दिन बोया जाता है और दसवीं दिन यानी( दसवीं) के दिन काटा जाता है और इस हरेली की ये मान्यता है कि यह हरेला मौसम बदलने व सर्दी के मौसम आने का प्रतीक माना जाता है



श्रावण मास का हरेला

हरेला

यह हरेला साल के मध्य में आने वाला त्योहार है जिसका कुछ अलग ही महत्व है यह हरेला देवभूमि उत्तराखंड में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है क्योंकि ये हरेले का त्योहार भगवान शिव जी से जुड़ा हुआ है क्योंकि देवभूमि उत्तराखंड एक पहाड़ों वाला राज्य हैं और इन्हीं पहाड़ों पर भगवान शिव जी का वास माना जाता है और इसीलिए देवभूमि उत्तराखंड में श्रावण के हरेले को इतना महत्व दिया जाता है हमारे बुजुर्गों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव जी वह माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए इनके विवाह के याद मे हम श्रावण मास का हरेला बनाया जाता है। इस हरेले में भगवान शिव जी के परिवार की पूजा अर्चना की जाती है और भगवान शिव जी की परिवार की शुद्ध मिट्टी से मूर्ति बनाकर और सजा कर इनकी पूजा की जाती है और भगवान शिव व माता पार्वती का पुनर्विवाह किया जाता है श्रावण मास का हरेला जाना ही इसलिए जाता है और यह त्योहार उत्तराखंड के अलावा हिमाचल प्रदेश में हर काली के नाम से यह त्योहार बनाया जाता है




बुजुर्गों द्वारा कहा जाता है कि हरेला अच्छी खेती का सूचक माना जाता है इसलिए बुजुर्ग कहते हैं कि जिस घर परिवार में जिसका जितना बड़ा हरेला होता है उसकी खेती उतनी ही अच्छी होती है और उस साल उस परिवार को खेती-बाड़ी में कुछ भी हानि नहीं होती है। कहीं-कहीं जगह पर सामूहिक हरेला बोया जाता है जिसमें गांव वाले सब साथ हरेले बोलते हैं और अपने कुलदेवता के साथ हरेला का त्योहार बनाते हैं।

हरेला त्यौहार ही एकमात्र ऐसा त्यौहार है। जिसमें हम सब लोग मिलजुल कर इस त्यौहार को साथ मनाते हैं। वह चाहे हमारे कुलदेवता व देवी देवता हो या चाहे हमारे रिश्तेदार हो या चाहे हमारे जानवर हो या हमारे घर हो हम लोग इन को भी त्योहार मे शामिल करते है।या


गाय को हरीले की माला चढ़ाना या अपने घरों के दरवाजे में हरेला लगाना और इसी दिन हम लोग हरेले की पूजा से पहले हम लोग अपने खेतों में वृक्षारोपण करते हैं। जिसे हम पहाड़ी भाषा में (रेडर ) लगाना कहते है।




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