सीरा के मल्ल वंशीय राजा
कुमाऊँ के पूर्वोत्तरीय जनपद 'पिथौरागढ़' का उत्तर-पूर्वी भूखण्ड प्राचीनकाल में 'सीरा' राज्य कहा जाता था। इसकी पूर्वी सीमा पर कालीनदी (अस्कोट ताखुका को छोड़कर) और पश्चिमी सीमा पर पूर्वी-रामगंगा प्रवाहित होती है। इसकी उत्तरी सीमा एकदम तिब्बत से मिलती है और दक्षिण-पश्चिम में सुवालेक की ‘गाड़' (लघु नदी) से क्रमशः बीसा बजेड़, सतगड़ और कनालीछीना होकर पूर्व में अस्कोट के दक्षिण पूर्वी छोर से अलग होती है। अंग्रेजी शासनकाल में 'सीरा' के पूर्वी खण्ड के कुछ भाग, के समीप पड़ते थे, उसी में मिला दिये गये जिससे अस्कोट का आकार कुछ बड़ा हो गया। इसे चंदों के समय से ही 'सीरा परगना' 1 कहा जाता था। सम्प्रति 'सीरा' परगने के अन्तर्गत ही डीडीहाट, मुनस्यारी, धारचूला मुख्य तहसीलों का सृजन किया जा चुका है।
चंद राजाओं के विजय-अभियान (सन् 1581 ई०) से पूर्व ‘सीरा' एक स्वतन्त्र राजनीतिक इकाई के रूप में विद्यमान् था। ‘सीरा' के राजा रैका और मल्ल दोनों नामों से प्रसिद्ध थे। 'रैका' (सं०, राजन्यक) उनकी राजनीतिक स्थिति की सूचक पदवी थी और 'मल्ल' उनकी वंशानुगत पहचान थी। इसी पदवी और जाति नाम से कालीनदी पार 'डोटी' इसी कारण (अब नेपाल का पश्चिमाञ्चल) के राजाओं का राज्य था। कतिपय इतिहासकार डोटी और सीरा के मल्लों को अभिन्न मानते हैं। कुछ का मत है कि 'सीरा' के रैका ‘डोटी' के रैकाओं (मल्लों) के करद थे। सीरा एवं डोटी के राजवंशों में अभिन्नता के पोषक हैं। मल्ल-रैकाओं के कालीपार (पश्चिमाञ्चल, नेपाल) और काठमाण्डू की उपत्यका के मल्लवंशी शासकों के अभ्युदय के काल में समानता है।
☆ फिर भी इतिहासकार इन दोनों मल्लवंशी राजकुलों को अलग -अलग मूल क्यों मानते हैं? और क्या कारण था....?
☆नेवार जाति के मंगोल मूल किस मूल गांव के संबंधित थे...?
☆ नेपाल देश का नामकरण किस कारण हुआ और किसके नाम से हुआ......?
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'डोटी' और 'सीरा' के रैका मल्लों का मूलवंश कुमाऊँ का कत्यूर वंश था (जोशी, 1688; 1660 : 67)। काठमाण्डू उपत्यका (भक्तगाँव) के मल्ल नेवार जाति के मंगोल मूल या मंगोल जाति के इतिहास से सम्बन्धित थे। उन्हीं के नाम पर 'नेपाल' का नामकरण हुआ है। इसलिए वे सीरा के मखों के समान वंशानुक्रम के नहीं थे। इसके अतिरिक्त, उनको अलग करने वाला एक तथ्य यह भी था कि सीरा के मल्ल परमवैष्णव थे। ‘सीरा' का भूपत मल्ल अपने को 'परमवैष्णव' घोषित करता है, 3 और 'जनम-जनम हरिभक्तिरस्तु' की कामना करता है। दूसरी ओर नेपाल के मल्ल अधिकांशत: बौद्ध धर्मावलम्बी थे।
☆ नेपाल देश अस्तित्व में कब आया....?
☆ चौबीसीराज का अर्थ क्या है....?
☆ बाइसीराज' का अर्थ क्या है......?
☆ डोटी किसे कहते है........?
☆नेपाल देश को नेपाल किस वर्ष कहा गया और किस कारण से.....?
सन् 1768 ई० से वर्तमान नेपाल राज्य अस्तित्व में आया, अन्यथा इससे पूर्व वह कई छोटी-छोटी स्वतन्त्र राजनीतिक इकाइयों में विभक्त था। नेपाल के पश्चिमाञ्चल में सप्तगण्डकी नदी से लेकर कालीनदी तक के प्रदेश में ये चौबीस की संख्या में होने से 'चौबीसीराज' कहलाती थीं। इन्हीं में से सप्तगण्डकी से भेरी-त्रिशूली नदियों के मध्य विस्तृत भू-भाग को हटा देने के पश्चात् बाईस ठकुराइयों का क्षेत्र ‘बाइसीराज' कहलाता था। इस बाईसीराज का प्रमुख प्रारम्भिक कुछ समय तक 'जुमला' का राजा भी रह चुका था। इसी 'बाइसीराज' में 'डोटी' भी स्थित था, जो एकदम कालीनदी से सटा होने स कुमाऊँ का पड़ोसी प्रदेश था। स्थानीय लोग इस प्रदेश को 'कालीपार' या 'डोटी' कहते हैं। बाद में यह नेपाल द्वारा विजित होकर सन् १७७६ के बाद से 'नेपाल' कहलाया। डोटी से पूर्व में बजांग और उसके पूर्व में बाजुरा प्रदेश हैं। तत्पश्चात् 'जुमला' का विस्तृत भू-भाग स्थित है। इस प्रकार, डोटी कुमाऊँ के जनपद पिथौरागढ़ का निकटतम पड़ोसी है। कालीनदी से दोनों की सीमाएँ पृथक् होती हैं। इसलिए 'डोटी' के मल्लों और सीरा के मल्लों का समान होना या एक ही वंश की दो शाखाओं का अलग-अलग शासन होना सम्भव लगता है। 'सीरा' के सदृश ही, पिथौरागढ़ के 'सोर' परगने के 'ब्रह्म' या बम राजा भी. डोटी' के अधीन माने जाते हैं। 'सीरा' और 'सोर' को अपने राज्य में मिलाने के लिए कुमाऊँ के चंद राजाओं को बारी-बारी से डोटी से लड़ना पड़ा था। यह भी बताया जाता है कि चंदों से पराजित होकर 'सोर' के 'बम या ब्रह्म राजा' और 'सीरा' के मल्ल अपने सहायकों सहित कालीपार 'डोटी' चले गये थे।
'सीरा' के मल्लों से सम्बन्धित प्रभूत ऐतिहासिक सामग्री विद्यमान है, और अभी खोज करने पर और भी जानकारियाँ मिल सकती हैं। तथा अन्य इतिहासकारों ने मल्लों से सम्बन्धित वंशावलियाँ और ताम्रपत्रों को विभिन्न स्रोतों से एकत्र कर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किये हैं। यह स्वाभाविक ही है कि इन विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध सामग्री में समरूपता सर्वत्र न हो। इनमें वंशावलियाँ, जो समय-समय पर एक ही कुल की अलग-अलग शाखाओं द्वारा बनायी गयी थीं, उनमें तथ्यों के स्थान पर काल्पनिकता का समावेश अधिक हुआ था। वंशावलियों की प्रामाणिकता की ओर प्राचीन लोगों का ध्यान बहुत कम गया है। किन्तु समय-समय पर निर्गत ताम्रपत्रों में शासकों के नाम और दान देने की तिथियाँ प्रामाणिक रूप से सही होती हैं। क्योंकि इन्हीं ताम्रपत्रों की प्राचीन कालीन भू-अभिलेखों में प्रविष्टि अनिवार्य रूप से तत्काल करायी जाती थी। प्रायः मन्दिरों और सदैव ब्राह्मणों को मल्ल राजाओं ने भूमिदान किया था। मल्लकालीन मन्दिरों और ब्राह्मणों को प्रदत्त दानपत्रों की प्रविष्टि चंदकालीन राजस्व एवं भू-अभिलेखों में सर्वत्र मिलती है। मन्दिरों एवं ब्राह्मणों की वृत्ति-स्वरूप प्रदत्त भूमि को प्रत्येक स्थिति में यथावत् रखा जाता था। 'सीरा' से प्राप्त राजस्व एवं भू-अभिलेखों में कई मल्ल राजाओं के नाम (तिथि-रहित), दानगृहीता के नाम और भूमि के विवरण उल्लिखित हैं। इनका मिलान उपलब्ध ताम्रपत्रों से भी हो जाता है। जिनके ताम्रपत्र उपलब्ध नहीं हैं, कम-से-कम उनके भी नाम तो मिल ही जाते हैं।सीरा' में राजस्व एवं भू-अभिलेख मल्ल एवं चंदकालीन बयाल परिवारों के पास संचित मिले हैं। इनमें बत्यूली 5 के 'बयाल परिवार' (जोशी) की परम्परा तो उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर साढ़े छः-सात सौ वर्षों सेअक्षुण्ण रूप से चली आयी है। और मसमोली गांव का इतिहास भी यह कहता है। कि जोशी भी मल्ल एवं चंदों के राजकाज का दायित्व निभाने में अग्रणी थे। इसी प्रकार चिटगाल गाँव, गड्यार गाँव के इतिहास मे भी यह लेखिया बयालों की बहियाँ छप चुकी है। 7 धींगतड 8 गाँव भी
'बयाल' जोशियों का था। महत्त्वपूर्ण अवसरों पर सभी ‘सीरा' के 'दवथरों' (दफ्तर) में बैठकर अपने विवरणों को, पिछले विवरणों के आधार पर पुनर्लेखित करते रहते थे। अलग-अलग ‘बयाल' परिवार को अलग-अलग मदों की बहियाँ अथवा अभिलेख तैयार करने होते थे। 'सीरा' से प्राप्त राजस्व-अभिलेखों को चंदों की विजय के पश्चात् शाके 1522 (= सन् 1600 ई०)मे
पुराने अभिलेखों के आधार पर पुनर्लेखित किये जाने का उल्लेख निम्न प्रकार से किया गया है:
“श्री राजा धीरमल्ल श्री आनन्दमल्ल श्री रिपुमल्ल श्री हरिमल्ल ज्यु श्रीशाके 1522 साकाल मै सीरा का देस मै सीर्ती को दवथर पछीलो दवथर देखी पछीलो दवथर सारो.....
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Good work
ReplyDeleteWaaa bhai kiya bta hai
ReplyDeleteKiya baat bhai
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if you have any dougth let me know