नालापानी-युद्ध
नालापानी-युद्ध में गोरखा पराजय : देहरादून से प्रायः साढ़े तीन मील उत्तर-पूर्व में अवस्थित यह स्थान स्थानीय लोगों में नालापानी या नालागढ़ी के नाम से अधिक परिचित है। यह अब 'खलंगा' के नाम से भी प्रसिद्ध है। क्या आप जानते है। क्या.......?
खलंगा किसे कहते है...?
खलंगा एक प्रकार का गोरखाली मे सैन्य शिविर को कहते है। जो कि अंग्रेज लेखकों ने कलंगा (KALANGA) बनाकर उसे स्थान का नाम दे दिया ।
शाल-वन से आवृत एक टीले के सर्वोच्च स्थान पर अमरसिंह थापा के भतीजे कै० बलभद्र सिंह ने जल्दी-जल्दी पत्थर-लकड़ी का एक साधारण दुर्ग बना लिया और तीन या चार सौ सैनिकों के साथ उसमें मोर्चा जमा लिया। उस वीर योद्धा ने क० मौबी के आत्मसमर्पण के पत्र को फाड़ दिया। २६ से ३१ अक्टूबर तक गिलेस्पी ने गढ़ को विजित करने का विफल प्रयास किया। गोरखा स्त्रियाँ दुर्ग मार्ग की रक्षिकाओं में प्रधान थीं। ३१ अक्टूबर को गिलेस्पी ने पूर्ण तैयारी के साथ आक्रमण किया, परन्तु इस युद्ध में वह मारा गया। ३१ अक्टूबर तथा २७ नवम्बर के दो युद्धों के पश्चात्, ३० नवम्बर १८१४ को लम्बी बमवारी के पश्चात् दुर्ग को तभी जीता जा सका जब दुर्ग-रक्षकों को बाहर से मिलने वाले पानी से वञ्चित किया गया। ३० नवम्बर की रात्रि में ही बलभद्र अपने ७० साथियों के साथ विजेताओं की सैन्य शक्ति को चीरते निकल गया। विजय के पश्चात् नालापानी दुर्ग को पूर्णतः धराशायी कर दिया गया। जौनागढ़ में बलभद्र द्वारा वीरतापूर्वक प्रतिरोध करने के बाद, वह भी उनके हाथ से निकल जाने पर, बलभद्र तथा उसके समस्त साथी रणजीत सिंह की सेना की ओर से अफगानों के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
हिमालय के इन वीर पुत्रों का सम्मान उनके शत्रुओं ने भी किया। नालापानी (खलंगा) में रिस्पना के बायीं ओर दो लघु स्मारक खड़े किये गये। एक मेजर-जनरल सर रॉबर्ट रोलो गिलेस्पी तथा उसके मृत सैनिकों की स्मृति में, दूसरा वीर बलभद्र ("for our Gallant adversary, Balbhadra") तथा उसके वीर साथियों के सम्मान में। अंग्रेज लेखकों ने खलंगादुर्ग-रक्षकों की वीरता की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। प्रत्यक्षदर्शी श्री फ्रेजर ने लिखा है कि, "जिस दृढ़ सङ्कल्प के साथ एक छोटी-सी टुकड़ी ने इस छोटी-सी चोटी को अपेक्षाकृत इतनी बड़ी सेना के सामने एक मास से अधिक हाथ से जाने नहीं दिया, इसकी प्रशंसा कोई आदमी करे बिना नहीं रहेगा-विशेषकर जब कि विगत दिनों के
'ख्याणी भीषण दृश्यों को सामने रखके देखेगा।....घेराबन्दी के समय खलंगा के सैनिकों ने अपने उच्च चरित्र को प्रकट किया। १७
पश्चिम में, अंग्रेज सेनाओं द्वारा ४ दिसम्बर को कालसी से ऊपर बैराठगढ़ तथा बाद में जौण्टगढ़ पर विजय के साथ दूण तथा जौनसार की विजय का कार्य समाप्त हुआ। अप्रैल और मई १८१५ में क्रमशः सूरगढ़ तथा मलाँवगढ़ पर भी अंग्रेजी सेना का अधिकार हो गया।
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ReplyDeleteGood job
ReplyDeleteCool bro shi likha hai
ReplyDeleteGood bro........ 💯💯
ReplyDeleteWaaaa kiya likh hai
ReplyDeleteCOol bro bhai
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ReplyDeleteWill bro 👍👍👍
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