गढ़वाल का इतिहास व उत्पत्ति

गढ़वाल का इतिहास

         आइए हम चर्चा करते हैं गढ़वाल के इतिहास की गढ़वाल का पौराणिक नाम  ' केदारखंड ' था इसकी भौगोलिक रूप को देखा जाए तो दक्षिण में गंगाद्वार हरिद्वार व   उत्तर में श्वेतांग पर्वत (हिमालय) श्रेणियो के अंत तक पूर्व में बौद्धाँचल  से पश्चिम मैं तमसा (टोंस) नदी तक माना जाता है

 गढ़वाल का अर्थ 

        गढ़वाल अर्थात गढ़ +वाल  = गढों वाला क्षेत्र गढ़वाल नाम के पीछे इस क्षेत्र में अनेक गढों का होना विशिष्टता रही है गढ़ शब्द पहाड़ी किलो का घोतक है| गढ़वाल में पहली बार छोटे-छोटे गढ़ों   को मिलाकर बड़े राज्य की स्थापना पंवार वंशी राजा अजय पाल ने की गढ़वाल शब्द का प्रचलन भी तभी से शुरू हुई जब राजा अजय पाल ने छोटे-छोटे राजा टुकुराइयों  को जीतकर एक  सुसंगठित राज्य का विस्तार किया गढ़वाल नाम प्रचलन सन 1557और  सन 1572 विक्रमी  अर्थात 1500 से 1515 ई•  के बीच माना जाता  हैं |


गढ़वाल की आध्यात्मिक संस्कृतिक

           गढ़वाल की आध्यात्मिक संस्कृतिक  एवं पौराणिक महत्व की भांति ही यहां का इतिहास भी मानव सभ्यता के विकास का साक्षी है| प्रागैतिहासिक कल  से ही इस भूभाग में मानवीय क्रियाकलापों का प्रमाण मिलता है चमोली जनपद में गुरख्या  उडृयार  तथा कीमनी उह्ययार प्रागौतिहासिक काल के प्रामाण प्रस्तुतकरते है। यह भूभाग नैसर्गिक सौन्दर्य के साथ -साथ आध्यात्मिक संस्कृति का केंद्र रहा है

त्गुप्त शासन काल

          उतर वैदिक काल में आर्यों के छोटे - छोटे राज्य थे इनमें सूर्यवंशी तथा चंद्रवंशी की दो शाखाएं प्रचलित मूवी मध्यकाल में जोशीमठ जिसे कार्तिकेयपूरी कहा जाता था कत्यूरियो की राजधानी चंद्रगुप्त ने इसे अपने राज्य की विलय कर दिया चंद्रगुप्त ने स्कनदगुप्त से के शासन काल तक यह क्षेत्र त्गुप्त शासकों के अधीन रहा| उस समय गढ़वाल कुमाऊं ब्रह्मपुरी कहा जाता था।

कत्यूरी शासन काल

        सन् 740 ई. से सन् 1000ई. तक गढवाल-कुमाऊं में कत्यूरी वंश का राज रहा| सन 1000 के आसपास कत्यूरी राजाओं की राजधानी कार्तिकेय पूरी जोशीमठ से स्थानांतरित होकर बैजनाथ स्थापित हो गई इस दौरान पराक्रमी राजाओं के अभाव में गढ़वाल में छोटी-छोटी ठाकुराइयों का राज स्थापित हुआ     

प्रसिद्ध मन्दिर

         सन 830 ई • के लगभग आदि गुरु शंकराचार्य ने गढ़वाल क्षेत्र में प्रसिद्ध धाम की स्थापना की बद्रीनाथ केदारनाथ प्रमुख थे  

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इसी समय चांदपूरी गढ़ी में गढवाल राज्य के प्रयम पंवार वंशी राजा कनकपाल ने गद्दी संभाली 34 वे राजा अजय पाल ने आसपास के अन्य गढ़ भी जीत की इस तरह से पूरे क्षेत्र का नाम गढ़वाल रख दिया 

            पवार वंशी राजाओं की राजधानी चंदा पुरी गढ़ी के बाद देवलगढ़ बनी सन् 1517 ई. मैं राजधानी श्री नगर स्थानांतरित कर दी गई उद्यान शाह पंवार वंश ने सबसे अधिक प्रतिभाशाली राजा थे गोरखाओ ने कुमाऊ को जीतने के बाद गढ़वाल की ओर आक्रमण किया खुड़बुड़ा युद्ध में प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त  सन 1815 में अंग्रेजों ने गोरखा को परास्त कर  अल्मोड़ा तथा गढ़वाल पर अधिकार कर लिया   सिंगोली की संधि के अनुसार अंग्रेजों ने राजा सुदर्शन शाह से अलकनन्दा और गंगापार का क्षेत्र युद्ध व्यय के बदले ले लिया।यह भाग ब्रिटिश गढ़वाल के नाम से जाना जाने लगा। टिहरी गढ़वाल का भूभाग राजा के पास रहा। इस तरह सुदर्शन शाह अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी ले गय। सन 1949 में टिहरी रियासत का भारत गणराज्य में विलय हो गया ।

 



   

           1960 तक गढ़वाल में दो जनपद पौड़ी गढ़वाल तथा टिहरी गढ़वाल ही अस्तित्व में थी| 24 फरवरी1960 को चमोली तथा उत्तरकाशी दो अन्य सीमान्त जनपद बनाये  गये| 1970 में गढ़वाल मंडल के गठन के बाद 1975 में देहरादून  जनपद को भी गढ़वाल मंडल में सम्मिलित कर दिया गया 1997 मे  रुद्रप्रयाग जनपद भी अस्तित्व में आया 

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